मैंने अभी क्रिकेट
किट अपने कंधे से उतार भी नहीं पाया था कि एक जाना पहचाना सा डाइलोग मेरे कानो
में गूंजा “आ गए लाड साहब, सचिन तेंदुलकर बनना चाहते हैं, किताबें तो आलमारी को सजाने के लिए
खरीदीं हैं”. पिता जी की बातें बिलकुल सही थीं क्यूँ
कि किताबें खरीदने के बाद जितनी एक्स्साईटमेंट में मैंने उसके नेम स्लिप पर अपनी
डिटेल लिखी थी उस एक्स्साईटमेंट को मै अगले एक हफ्ते तक भी नहीं कंटिन्यू नहीं कर
पाया था. और फिर तो वही किताबे खुलती थीं जिनका होम वर्क मुझे करना होता था. लेकिन
साथ ही मेरा क्रिकेट बैट हर शाम सुबह मेरे हाथों मे होता था, और सन्डे के दिन तो शायद जैसे उसके बिना
जिंदगी मुमकिन ही नहीं थी. मुझे लगता था कि क्रिकेट मेरा एक्स्साईटमेंट नहीं बल्कि
मेरा एडिक्शन हो गया है.
कुछ ऐसा ही अनुभव
मुझे तब हुआ जब मैंने अपने एक दोस्त को फिर से सिगरेट पीते हुए देखा “अरे अभी तुमने कल ही तो प्रोमिस किया था
कि आज के बाद कभी नहीं पिऊंगा” मैंने उसे याद दिलाते हुए कहा ‘हाँ यार बोला तो था लेकिन अगले हफ्ते मेरा जन्मदिन है उसके
बाद तो बिलकुल हाथ नहीं लगाऊंगा. वो एक बार फिर से अपना सिगरेट पीने का लाइसेंस
अगले एक हफ्ते के लिए रिन्यू कर चूका था. ऐसे ना जाने कितने सारे प्रोमिसेस हम हर
रोज कर लेते हैं और खास करके साल की पहली तारीख तो सबसे शुभ मुहूर्त वाला दिन होता
है लेकिन हम सबको पता है कि ये प्रोमिसेस कितने दिन चलते हैं.
अगर मै गलत नहीं
हूँ तो ये सारी आदतें बड़ी एक्स्साईटमेंट से शुरू की गई होती है और बाद में
एडिक्शन बन के रह जाती हैं.
ये बातें मुझे
इसलिए याद आ रही है क्यूँ कि कुछ दिन पहले ही इक मेरा दोस्त मुझसे हाउ टू बी
सक्सेस्फुल? पर मेरी राय पूछ रहा था. अगर इस टोपिक पर
गूगल सर्च करें तो ना जाने कितने ढेर सारे नुस्खे आपको मिल जायेंगे, जैसे प्रोअक्टिव बनिए,रिस्क और चैलेंजेज लीजिए, टाइम मैनेजमेंट, लीडरशिप इत्यादि. लेकिन इन नुस्खो का वही हाल होता है जो हम
अक्सर अपनी दवाओं के साथ करते है “जब तक तबियत ठीक ना हो तो टाइम पर खाते है और थोडा सा सुधार
होने पर टाइम पर खाने की बात तो दूर, कुछ खुराक तक बच जाती है जो ऐसे ही इधर उधर पड़ी रहती है ”
मुझे तो थोमस
अल्वा एडिसन के सक्सेस के पीछे उनका एक्स्साईटमेंट और एडिक्शन ही दीखता है जो हजार
बार फेल होने के बाद भी सक्सेस से पहले नहीं रुका.
यही गैप होता है
हम में और हमारे सक्सेस में, सपने तो हर कोई बुन
लेता है न भी हो तो बुनने में देर नहीं लगती है, पर हम अपनी एक्स्साईटमेंट को एडिक्शन में बदल नहीं पाते
हैं. हालाँकि हम सभी शत प्रतिशत सफल होना चाहते हैं चाहे वो हमारी पर्सनल या
प्रोफेशनल लाइफ हो, पर सवाल ये आता है कि क्या हम शत प्रतिशत एफर्ट दे पाते हैं
? अगर नहीं तो हमें पूरी सफलता कैसे मिल सकती है और हमें अपने
भाग्य को कोशने का कोई अधिकार नहीं है. हम सभी जानते है कि जिस चीज के हम एडीक्टेड
हो जाते है उसके लिए हमें कभी भी किसी टाइम मैनेजमेंट,रिस्क मैनेजमेंट और किसी लीडरशिप की जरुरत नहीं होती है. अब
जरुरत है तो बस एक्स्साईटमेंट को बनाये रखने कि चाहे वो हमारी पर्सनल लाइफ हो, प्रोफेसनल लाइफ हो या हमारे रिश्ते, क्यूँ की सक्सेस का राज एक्स्साईटमेंट
और एडिक्शन में ही छुपा हुआ है मेरे दोस्त.
(This article was published in Inext on 20/08/12 (Dainik Jagran)- http://inextepaper.jagran.com/52591/INEXT-LUCKNOW/20.08.12#page/11/2
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