Monday, 4 January 2016




तमीज का डेमो
अभी कुछ देर पहले की ही बात है, मैंने एक स्नैक्स पॉइंट पर लंच किया और फिर एक चॉकलेट कप लेकर खाने लगा, स्टॉल बाहर की तरफ ही लगा था, ये बच्चे मेरे पास भागते हुए आये और चॉकलेट मांगने लगे जो लगभग आम बात उन बच्चों के साथ जो अपना बचपन फुटपात पर जीते हैं और जीविका कूड़े में खोजते हैं ।
तभी रेस्टोरेंट का ऑफिस बॉय इनको भगाने के लिए आया और मारते हुए भगाने लगा हाँ साथ में कुछ गालियां भी दी ।
अरे अरे क्यों मार रहे हो भाई - मैंने उसे रोकते हुए बोला 
अरे सर आप नहीं जानते हैं बहुत बद्तमीज हैं ये बस मारने की भाषा समझते है - ऑफिस ब्यॉय
लेकिन इसमें इनका क्या दोष है, तुम तो मुझे निहायत खनादानी लग रहे हो और जब तुममे तमीज नहीं है तो इनमे कहाँ से होगी जिसने बचपन संभालते हुए कूड़े में ही अपनी जिंदगी खोजी और तुम्हारे जैसे लोगों से रूबरू हुआ ।
मैंने चार केक पुडिंग्स और आर्डर दिया और बच्चों में बाट कर साथ ही खाने लगा ।
मेरे आर्डर देने के बाद उनके चेहरे बिल्कुल उतनी ही ख़ुशी थी जितनी गर्ल फ्रेंड के प्रोपोजल एक्सेप्ट करने पर आशिक की होती है ।
और लगभग सभी ने एक साथ ही मुझसे बोला "थैंक्यू भइया"
मैंने उनसे इन शब्दों की बिलकुल उम्मीद नहीं की थी क्यों की उनमे तमीज का ना होने की बात मैं भी मान रहा था ।
लेकिन "थैंक्यू भइया" ने मुझे अंदर से झकझोर दिया और एहसास हो गया की तमीज तो कमाई जाती है ।
मैंने ऑफिस बॉय की तरफ देखा तो वो आँखें नहीं मिला पा रहा था क्यों की
"तमीज का डेमो ही गजब का था"
मात्र 80 रूपये में तमीज़ और खुशियाँ दोनों खरीद ली थी मैंने ।
प्रवीण)

1 comment:

  1. मैंने आपकी ये पोस्ट शायद फेसबुक पर भी पढी थी क्या ..मैं वहां भी ठिठक गया था यहाँ भी | ईश्वर आपको सारी खुशियाँ दें ..आप उन्हें आगे बांटते चलें ..यही जीवन है | आपको ब्लॉग सुन्दर है

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