नेताओं के विचार लेने के मामले में मिडिया की अपनी प्री-डिफाइंड लिस्ट होती है, और मुझे लगता है कि अगर कोई जब मीडिया हाउस ज्वाइन करता है तो ट्रेनिंग के दौरान उसे सपथ दिलाया जाती है कि
"मैं TRP की कसम खाकर कहता हूँ कि मेरी इस नौकरी के दौरान अगर किसी ज्वलंत मुद्दे पर किसी नेता, अभिनेता का विचार लेना पडेगा तो मैं इस कंपनी की दी हुई लिस्ट के अलावा किसी और से बात नहीं करूँगा और TRP के मामले में किसी प्रकार का समझौता नहीं करूँगा" ।
मतलब इंटरव्यू लेने के मामले में रिपोर्टर कतई जेहादी टाइप हो लिए रहते हैं " जैसे किसी मंदिर की कोने की एक ईंट निकल गई तो योगी आदित्यनाथ के तरफ माइक लेकर भागना है, और पूछना होगा कि सर आपको क्या लगता है कि ट्रैक्टर कहीं दूसरे धर्म का ड्राइवर तो नहीं चला रहा था न, ये एक ईंट निकालकर आपके धर्म की नीव कमजोर करने की कोई साजिश तो नहीं है ।
अगर किसी मस्जिद के कोने पर किसी ने कमला पसंद खाकर थूक दिया है तो इंटरव्यू ओवैशी का बनता है "सर आपको क्या लगता है कि मस्जिद के आस पास जो हिंदुओं ने पान की दूकान लगा रखी ये कहीं उन्ही की साजिश तो नहीं है ये आपके धर्म पर भगवा कलर की थूक से आपके धर्म को नीचा दिखाने की नापाक कोशिश तो नहीं है न ?"
बात आगे की करते है सोचिये मायावती की किस्मत भी कमाल की है अगर तीसरा विश्वयुद्ध भी छिड़ जाए तो एक मिडिया वाला मायावती के पास नहीं जायेगा लेकिन सवर्णों के खेत में लगे कटीले तार से अगर किसी दलित की धोती फट गई तो मिडिया सबसे पहले मायावती को फोन लगाएगी "मैडम आपको नहीं लगता कि सवर्णों ने जानबूझकर कटीले तार बाहर की तरफ लगा रखे हैं जिससे कि दलित की धोती फ़टे और दलितों की इज्जत सरेआम उछाली जा सके" ।
मुझे लगता है कि मिडिया किसी घटना के बाद की घटना के लिए एकलौती जिम्मेदार होती है । TRP एक यज्ञ है, नेता उसमे डाले जाने वाले घी, और आहुती तो हमेशा से जनता की ही दी जाती रही है ये आपको बताने की जरूरत नहीं है ।
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