Friday 22 September 2017



माँ तो माँ होती है सर इसमें मेरी और आपकी माँ जैसा कहाँ कुछ होता है, ये शब्द उबर कैब के ड्राइवर राहिद के थे | आज की कहानी कुछ ऐसी है कि सुबह अचानक माताजी की तबियत बिगड़ जाने से उन्हें एम्स ले जाने का प्लान हुआ, हालांकि उन्हें दो दिन बाद ले जाना ही था तो सोचा आज ही दिखा लाते हैं, मैने डॉ साहब से बात की तो डॉ साहब ने कहा कि अगर 1 बजे तक आ जाओगे तो मुलाकात हो जाएगी, मैंने करीब 12 बजे कार बुक कर दी, उबर के हिसाब से कैब महज दो मिनट में आनी थी, बारिश भी हो रही, डर था की कहीं ट्रैफिक जाम ना मिल जाये, लेकिन ये पूरा विश्वास था कि अगर कैब अगले 5 मिनट में भी आ जाती है तो एम्स 1 बजे तक पहुच ही जाऊंगा. 5 मिनट हो गये थे कैब अभी तक नहीं आई, मैंने कॉल किया तो राशिद ने बताया कि सर बिलकुल आस पास में ही हूँ बस दो मिनट में पहुच रहा हूँ , मैंने उनसे अपनी समस्या बताते हुए रिक्वेस्ट की थोड़ी जल्दी आइये 1 बजे तक नहीं पहुचेंगे तो कोई फायदा नहीं होगा | खैर कैब कुल 15 मिनट की देरी से आई, बारिश शुरू हो गई थी, मैंने कैब में बैठते ही बोला भाई जितनी जल्दी हो सके पहुचा दो, हलाकि कैब लेट होने से मूड थोडा ख़राब तो था लेकिन मैंने इसे जाहिर नहीं होने दिया था | रास्ते में कई जगह गड्डे आये तो कार हिली और ब्रेक लगा मैंने तुरंत बोला भाई जल्दी तो है लेकिन समस्या ये है की आपको आराम आराम से ही चलाना पडेगा क्यूंकि माताजी का ऑपरेशन हुआ है तो झटकों से उन्हें दर्द होगा |
सर, मै बिलकुल ध्यान रखूँगा अब, लेकिन क्या करूँ दिमाग में ये भी है कि जल्दी पहुचाना है आपको तो थोड़ी एक्स्लेरटर पर पैर रखना ही पड़ेगा |
राहिद ने पूछना शुरू किया की क्या हुआ है, मैंने बहुत डिटेल में ना बताते हुए सारी बात समझा दी, बारिश बढती जा रही थी और उसी रफ़्तार से ट्रेफिक और मेरी बेचैनी भी |
“सर माँ तो माँ होती है न चाहे मेरी हो या आपकी” ये बात राहिद ने अचानक बोली थी |
मैंने अपने चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कराहट रखने हुए हाँ में गर्दन हिला दी जैसे की वो ज्ञान दे दिया हो जिसकी जरुरत नहीं थी और जिसका यथार्थ से कोई खास सम्बन्ध भी नहीं था |
राहिद आगे भी इसी टॉपिक पर बात करना चाह रहा था लेकिन मैंने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई तो शायद वो गाडी चलाने पर ही फोकस करता रहा |
सर पता है पिछले 2 दिन से लगातार गाड़ी चला रहा हूँ, घर भी नहीं गया |
इस बार फिर से उसने अपनी बात कह दी थी शायद इस उम्मीद में की इस टॉपिक पर मै कुछ बात जरुर करूंगा
मुझे लगा कि अगर अब आगे बात नहीं की तो शायद गलत होगा अब, मैंने पूछ ही लिया क्यूँ – बस सर टारगेट पूरा नहीं होता है तो कमाई नहीं होती है, ओला वाले अच्छे हैं सर उसमे गाडी थी तो कमाई अच्छी थी, वो शुरू हो चुका था अब इस बात की परवाह करते हुए कि मै सुन भी रहा हूँ |
1 बजकर 30 मिनट हो गये थे एमी अभी भी नहीं पहुच पाया था, डॉ साहब से बात हुई तो उन्होंने बताया की मै तो निकल चूका हूँ लेकिन एक डॉ को बोल दिया है उनसे मिल लेना | मै मन ही मन दिल्ली के ट्रेफिक को कोस रहा था कि पीछे से मम्मी की अचानक आवाज आती है, मंटू (मेरा घर का नाम) गाडी रुकवाना मुझे उलटी होने वाली है |
मम्मी जिस बीमारी से गुजर रही हैं उसमें उल्टियाँ बहुत आम रही है पिछले 8 महीने से, लेकिन दिल्ली के रिंगरोड, जैम पैक्ड सड़क और कार में उल्टी होना कतई आम बात नहीं थी उस वक्त |
मुझे समझ में नहीं आया की क्या करूँ और इसी बीच उन्होंने शीशा नीचे करके अपनी गर्दन बाहर निकालते हुए उल्टी करने की कोशिश करने लगी जिससे की कार गन्दी ना हो, मेरा ध्यान पीछे से आ रही गाड़ियों पर था कि गरदन बाहर निकली है तो कोई दूसरी मुसीबत ना जाए |
राशिद इसी बीच कार को किनारे लगाने के लिए कोशिश करने लगा, लेकिन रिंग रोड पर जहाँ लोग एम्बुलेंश को रास्ता देने के हिचकिचाते हैं वहां एक आम कार को किनारा मिलना कितना मुश्किल होता है ये दिल्ली वाले जानते हैं, खैर, इसी बीच मम्मी की उल्टियाँ बढती जा रही थी, मेरा दिमाग पीछे की गाड़ियों पर था, राशिद की कोशिश से कार थोड़ी किनारे हुई और उसने फिर कार रोक दी |
मुझे अजीब लगा की उसने कार क्यूँ रोक दी और ये देखने के लिए जैसे मैंने उसकी तरफ गर्दन घुमाई तो देखता हूँ को अपनी सीट से पीछे की तरफ होकर मम्मी के पीठ को थपथपा रहा था, बिलकुल वैसे ही जैसे जब हम लोग उल्टियाँ करते हैं तो माताजी लोग थपथपाती हैं |

उसने मेरी तरह देखते हुए कहा “सर अब गाड़ियाँ निकल जायेंगी, अभी माताजी की तबियत जरुरी है और ये बोलते हुए वो पानी की बोतल से पानी पिलाने लगा”
आंटीजी मुंह भी धो लीजिये, थोड़ी कुल्ला कर लीजिये, मुंह का टेस्ट नार्मल हो जायेगा |
मै निशब्द हुआ जा रहा था, और इस बात के लिए खुश भी था कि जो बात उसने थोड़ी देर पहले बोली थी वो उसको जीता भी है|
मुझे इस तरह के सपोर्ट की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी, लेकिन अच्छा लगा की रिश्ते तो कहीं भी जुड़ जाते हैं, और निभा लिए जाते हैं, बस दिल में इंसानियत जिन्दा हो |
जाते जाते जब उसने हमें एम्स के सामने उतारा तो मै उसकी उस बात पर बड़ी देर तक मुस्कराता रहा जब उसने मुझसे कहा “सर 5 स्टार रेटिंग दे देना”
और मेरा जी चाहा की उसे गले लगाते हुए फ़िल्मी अंदाज में ये बात बोल ही दूँ कि “बस कर पगले रुलाएगा क्या?”
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