Friday, 8 February 2019


माँ कभी अकेले नही मरती!
मर जाता है आपका बचपन, मर जाती है आपके बचपन की वो सारी कहानियां जिसकी एक मात्र साक्षी बस माँ ही होती है, मर जातें है बचपन के वो सारे किस्से जो बस माँ के मुंह से ही अच्छे लगते हैं ।
मर जातीं है वो खुशियां, मुस्कुराहटें जो उस कहानी में माँ और बेटे, दोनो के चेहरे पर हर बार एक साथ आते थे, मर जाते हैं वो एहसास जब उनका हाथ सर से होते हुए चेहरे पर आता था, जिसके छुवन को शब्दों में समेटने कोशिश करना भी गुस्ताखी होगी ।
मर जाती है वो तोतली आवाज़ जिसे बच्चा बड़ा होने के बाद भूल जाता है, पर माँ हमेशा याद रखती थी ।
मर जाते हैं वो सारे स्वाद जो बस माँ के हाथों से निकलते थे, जो दुनिया के किसी भी दूसरे किचेन में नही मिल सकते ।
मर जाते वो सारे अनकहे दर्द, दास्तां जो छुपा लिए थे उन्होंने, महज़ इसीलिए की दुःखो को अपने आप तक समेटने का हुनर बस माँ में ही होता है।
मर जाती है वो मुहब्बत जो *लाडला* शब्द में मिलती है।
मर जाते हैं वो सारे गुहार, मन्नतें, दुवाएं जो हर त्यौहारों में, गली मोहल्ले और आस पास के मंदिरों में बैठे हर देवी देवताओं से माँ अपने बच्चों के लिए लगाया करती है ।
मर जाती है वो तकरार जो पिता जी से अक्सर हो जाती थी, जो बच्चे के हर नादानियों, गलतियों पर पर्दा डालने के लिए माँ लेकर आ जाती थी ।
मर जाती वो पसंद नापंसन्द की लंबी चौड़ी लिस्ट, जो बस माँ को पता होती है, जिसके बारे में खुद बच्चा भी अनजान रहता है ।
मर जाती है वो हर अदालत जिसमें हर केस की सुनवाई चाहे जितनी लंबी चले, चाहे जितनी खिलाफत वाली दलीलें दी जाए लेकिन माँ का अंतिम फैलसे में बच्चा जीत ही जाता है ।
मर जाती है वो सच्चाई और ईमानदारी की सबसे मजबूत दलील जो बचपन से लेकर अब तक "माँ कसम" बोलने से आती है ।
मर जाती हैं वो आँखें जिसके अपने हर सपने में बच्चे को केवल बड़ा, और बेहतर देखने की ही इजाज़त होती है ।
मर जाती है वो सुबह, जिसमें कई बार जागने के बाद भी बच्चा माँ के जगाने का इंतज़ार करता है, और माँ के बोलने पर ही जागता है ।
बंद हो जाते हैं वो सारे खाते, जिसमें कुछ बिना डिपॉजिट किये भी हमेशा लाड़, प्यार और आशीर्वाद जितना और जितनी बार विड्रॉल कर लो वो खत्म होने का नाम नही लेते ।

हाँ, माँ कभी अकेले नही मरती ।

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