उम्मीदों के साथ सबसे बुरी और अच्छी बात ये हैकि इसका ग्राफ कभी नीचे नहीं जाता, समय दर समय ये ऊपर ही बढ़ता जाता है, सोशल मिडिया ने पब्लिशिटी का सारे दायरे तोड़ दिए हैं, बातें जो पहले सामान्य होती थी आज पल भर में असामान्य हो जाती हैं, जो पहले आसानी से इग्नोर हो जाती थीं आज उनसे पीछा छुड़ाना मुश्किल हो जाता है, और कब आपके ज़ेहन का हिस्सा हो जाती हैं पता भी नहीं चलता. पिछले कई दिनों से फेसबुक पर लगातार टॉप बच्चों के फ़ोटोज, उनके मार्क्स और उनकी तारीफें चल रहीं हैं, पेरेंट्स बच्चों के साथ अपनी फ़ोटोज डालकर जनता से आशीर्वाद मांग रहे हैं और जनता भी खूब आशीर्वाद दे रही है. साथ ही कई ये भी लिखते हैं कि मै तो अपने टाइम में इसका आधे मार्क्स भी नहीं ले पाया था, या जितने मार्क्स इसके आयें हैं उतने तो हमारे दशवीं और बारहवीं मिलाकर नहीं थे. खैर होना भी चाहिए जो बात काबिलेतारीफ हुई है, उसकी तारीफ, जायज और जरुरी भी है.
पर सबसे अजीब ये लगता हैकि मैंने कहीं कोई ऐसी पोस्ट नहीं देखी, जिसमें किसी पैरेंट से अपने बच्चे को महज पास होने कि बधाई दी हो, और बोला हो बेटा कोई बात नहीं मै भी अपने टाइम पर पास ही हुआ था, लेकिन आज जिंदगी के इम्तेहान में जीना आता है मुझे, किसी पिता ने ये नहीं लिखा कि क्या हुआ तुम मिडिया कवरेज में नहीं आये तो क्या हुआ और भी बहुत मौके आयेंगे जब मीडिया कवर करने आ सकती है तुम्हारे पास, अभी तो बस सुरुवात है. मेरे फेसबुक के फ्रेंड पूरी हो चुकी है यानि पांच हजार के बाद करीब 900 से ज्यादा फ्रेंड रिक्वेस्ट मै एक्सेप्ट नहीं कर पाया हूँ तो क्या इनमें से किसी के घर का बच्चा फेल या कम अंकों से पास नहीं हुआ होगा? ऐसा मानना तो गलत है, यानि अगर हुआ है तो एक दो पोस्ट तो बनती थी न.
करीब 13 साल हो गए मुझसे किसी ने मार्क्स और प्रतिशत नहीं पूछा, 44% हाई स्कूल में, बारहवीं 51% और BA 49% मुझे याद है, दशवीं के रिजल्ट के दिन पापा से ठीक से बात नहीं हो पाई थी, खुश नहीं थे वो, और कहीं न कहीं मै भी. उम्मीद नहीं थी कि थर्ड डिविजन पास हूँगा, बचपन में जैसे कि हर घर में होता है मुझे भी मोहल्ले के अच्छे और पढ़ाकू बच्चों के लिए ताने मारे गए, कि वो तो 3 बजे सुबह जागकर पढता है, इनकी तो नींद ही नहीं खुलती. थर्ड डिविजन पास होने के बाद सब कुछ सही लगा था पापा पास हो गए थे और मै फेल, लेकिन कुल मिलाकर मै उस दिन अपने ही घर, परिवार और गाँव में बहुत अकेला और टुटा हुआ था, हाथ में क्रिकेट का बल्ला नहीं लिया कई दिनों तक, टीवी देखने नहीं गया, क्युकी ये सब कुछ करने से रोका गया था मुझे अच्छे मार्क्स के लिए और अब हिम्मत नही बची थी, बचपन में अकेलापन और डिप्रेशन ज्यादा खतरनाक होता है, अचानक करियर ख़तम होने जैसे फीलिंग आने लगी थी, जब करियर कि स्पेल्लिग़ तक याद नहीं थी. खैर घर कि पंचायत बैठी और मुझे फिर से दशवीं एटेम्पट करने का प्रेशर दिया गया क्यूंकि जो बाकि लोग थर्ड डिविजन पास हुए थे सब यही कर रहे थे मेरिट के चक्कर में. खैर उस वक्त मेरे नाना जी ने मुझे सपोर्ट किया था.
खैर ये कहानी लम्बी है, लेकिन आज जिंदगी के इस पड़ाव में हडप्पा मोहनजोदारो की खुदाई कब हुई थी, वो डेट जो बोर्ड एग्जाम के लिए बड़ी मुश्किल से रटी थी, काम नहीं आती है, बहुत उठा पटक देखे लाइफ में मार्क्स का ख्याल नहीं आया कभी, आज भी 76 का सामान खरीदने पर 100 देने के बाद खुल्ला कितने का मिलेगा समझ में नहीं आता तुरंत लेकिन लाइफ मस्त है.
आज जब बड़े बजे मंचों से, सफल स्टार्टअप के फाउंडर्स को कॉलेज ड्राप आउट बोलते सुनता हूँ तो समझ में आता हैकि जिंदगी महज़ मार्स्ह से नहीं चलती, न ही सफल होना यहाँ इस पर डिपेंड करता है. कई बार कोटा जैसे शहरों से ख़बरें आती हैंकि फलां बच्चे ने आत्महत्या कर ली, क्यूंकि वो प्रेशर में आ गया था तो डर लगता हैकि ये आज का पोस्ट कहीं उसके लिए प्रेशर तो क्रिएट नहीं करेगा ना, डर लगता हैकि जब फेल हुए या कम अंकों वाले बच्चे इन पोस्टों को देखते होंगे, तो कहीं हीन भावना का शिकार तो नहीं हो रहे होंगे, क्या उनमें फिर से उठने और लड़ने का मन करता होगा, कहीं उनका बचपन इन्ही लाइक्स और कमेन्ट के चक्कर में ना मर जाए, सोचता हूँ ये इनमें से अधिकतर बच्चे जब किसी न किसी अफेयर में आयेंगे और उसमें से कईयों का दिल टूटेगा, जो कि लाज़िमी है, तो इनमे से कोई दिल टूटने के बाद जिंदगी तोड़ने जैसी बात तो नहीं सोचेगा, उसे उस वक्त जिंदगी से लड़ना तो आयेगा न, कई बार सोचता हूँ जिन्होंने आज टॉप किया है या बेस्ट आयें हैं, कहीं न कहीं कभी कुछ कम मार्क्स ले आये तो कहीं डिप्रेशन में न चले जाएँ, क्युकी अगर परफॉरमेंस प्रेशर नाम की कोई चीज नहीं होती तो तेंदुलकर जैसे महान बल्लेबाज को अपने एक सौंवा शतक के लिए 34 पारियों और करीब एक साल का वक्त नहीं लगता.
डिअर पेरेंट्स याद रखिये, उम्मीदों के साथ सबसे बुरी और अच्छी बात ये हैकि इसका ग्राफ कभी नीचे नहीं जाता, खूब तारीफ कीजिये, अपने टाइम के मार्क्स की तुलना कीजिये, बस उसे ये भी सिखाइए कि जितने अच्छे आप बेटे बन पायें हैं अपने माँ बाप के लिए, ये भी बनें, हमें देश में बढ़ते वृद्धा आश्रमों से बहुत डर लगता है. और साथ में उन्हें ये भी बताइये कि बेटा, अगर इससे कभी कब भी मार्क्स आये तो भी हम तुम्हारे बारे में पोस्ट करके तुम्हारा नाम करेंगे, तुम तो बस जीना सीखो, लड़ना सीखो, आगे बढ़ना सीखो.
डिअर पेरेंट्स याद रखिये, उम्मीदों के साथ सबसे बुरी और अच्छी बात ये हैकि इसका ग्राफ कभी नीचे नहीं जाता, खूब तारीफ कीजिये, अपने टाइम के मार्क्स की तुलना कीजिये, बस उसे ये भी सिखाइए कि जितने अच्छे आप बेटे बन पायें हैं अपने माँ बाप के लिए, ये भी बनें, हमें देश में बढ़ते वृद्धा आश्रमों से बहुत डर लगता है. और साथ में उन्हें ये भी बताइये कि बेटा, अगर इससे कभी कब भी मार्क्स आये तो भी हम तुम्हारे बारे में पोस्ट करके तुम्हारा नाम करेंगे, तुम तो बस जीना सीखो, लड़ना सीखो, आगे बढ़ना सीखो.
आखिर में नाराजगी बस उन लोगों से हैं जिनके बच्चों ने कुछ खास नहीं किया और फेसबुक पर नहीं पोस्ट हो पाए
0 comments:
Post a Comment