Monday 30 December 2013


एक ट्रेनर होने के नाते, हर हफ्ते बहुत से नए लोंगो से मिलता हूँ और अगला पांच दिन इन्ही लोंगो को सिखाने और सिखने में जाता है, हर एक बैच कुछ नहीं पहचान लेकर आता है और कुछ नया सिखला जाता है.
ऐसा ही एक अलग बैच था जो मेरे जन्मदिन वाले हफ्ते में मुझे ट्रेन करने को मिला.
सोमवार की सुबह साढ़े नौ बजे, मेरा एक तरफ अपने लैपटॉप में उस एक्सेल शीट की तरफ देखना और फिर ट्रेनिंग रूम में आये हुए कैंडिडेट्स की हाजिरी सुनुश्चित करना, यही होता है हर दिन ट्रेनिंग शुरू करने ने पहले. और फिर दश बजते ही मै अपनी ट्रेनिंग शुरू कर देता हूँ. ये मेरे ट्रेनिंग की आम बात है जो पहले से ही लोंगो को पता होता की, मै दश बजने के बाद किसी भी कैंडिडेट को ट्रेनिंग में आने की परमिशन नहीं देता हूँ.
फिर क्या ट्रेनिंग विधिवत शुरू होती है, और फिर अचानक मेरे फ़ोन पर डेलही से एच आर डिपार्टमेंट का फोन  आता है, “गुड मोर्निंग प्रवीण, एक कैंडिडेट है जो कुहरे की वजह से लेट हो गया है, अगले आधे घंटे में पहुच जायेगा, अगर आप बोलते हो तो उसे बुला देते हैं नहीं तो वापस भेज देंगे”.
हालाँकि ये उस फ़ोन करने वाले को भी पता था की ऐसे मौकों पर मेरा जवाब क्या होता है. लेकिन पता नहीं क्यु मैंने ट्रेनिंग रूम से बाहर की तरफ देखा, और फिर मुझे ठंठ की वजह से खुद का ख़राब हुआ रूटीन याद आ गया, ना चाहते हुए भी मैंने हां में जवाब दे दिया, “ठीक है उसे बोल दो की वो जल्दी आ जाये लेकिन अगर आधे घंटे से लेट हुआ तो मै उसको एंट्री नहीं दे पाउँगा” मैंने अपनी ट्रेनर वाली स्टाइल में जवाब दिया. एक प्यारा सा धन्यवाद के बाद फ़ोन कट जाता है, और मै फिर से अपने नए ट्रेनीज के साथ आपसी परिचय में खो जाता हूँ.

खैर समय पर वो नया कैंडिडेट आ जाता है, और फिर दोपहर का समय, घडी के ढेढ़ बजाते ही, नए ट्रेनीज और खुद के पेट से एक ही आवाज आती है, की अब लंच ब्रेक हो जाना चाहिए.

“पैंतालीस मिनट का समय है, आप सभी लोग लंच के लिए बाहर जा सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे पैंतालीस मतलब पैंतालीस” उन बुझते हुए चेहरों पर एक राहत की चमक देखकर खुद को भी ख़ुशी हुई.
मेरी घडी में ढेढ़ बज रहे हैं हम सभी लोग दुबारा दो बजकर पंद्रह मिनट पर मिलेंगे” मैंने समय को लेकर थोड़ी और सजकता दिखाई, पंजाब में ट्रांसफर होने के बाद मुझे अकसर इस मुद्दे पर अपने आपको और सजक रखना पड़ता है.
“ठीक है सर” दूसरी तरफ से कई लोंगो का जवाब आता है.
दो बजकर पंद्रह मिनट, सारे लोग ट्रेनिंग रूम के अन्दर होते हैं. अरे नहीं अभी एक नहीं आया. मै उसका  नाम लेकर बाकियों पूछा, जवाब आता है “सर उसने हमारे साथ लंच नहीं किया हमने उसे बस अड्डे की तरफ जाते हुए देखा”.

पता नही क्यूँ लेकिन कुछ ज्यादा अजीब नहीं लगा क्यूँ कि अब आदत सी हो गई है इन सब तरह की घटनाओं की, मन में सोचा चलो पांच मिनट वेट कर लेता हूँ आ जायेगा,
ठीक पांच मिनट बाद मैंने ट्रेनिंग शुरू कर दी कुछ देर बाद गेट पर उसकी एंट्री होती है. मैंने घडी की तरफ देखा, पुरे पच्चीस मिनट बाद ?
कहाँ चले गए थे, टाइम के बारे में सुना नहीं था क्या ?
“सर मेरा घर पास में ही है, बिजली के बिल का आज अंतिम दिन था, तो जमा करवाने चला गया”
उसके जवाब ने मेरे सहन शक्ति को जैसे झकझोर ही दिया हो.
“तुम्हे लंच के लिए समय मिला था या बिजली का बिल जमा करवाने के लिए?” मन तो नहीं था फिर भी मैंने उससे पूछ लिया.
“सर घर में कोई और दूसरा नहीं है, माँ अकेले हैं तो मुझे ही जमा करवाना था”. उसका अगला जवाब था.
जी में आया की पूछ लूँ की आज से पहले क्यूँ नहीं किया ये सब, लेकिन मुझे बाकि ट्रेनीज का ख्याल आया की मै इनका समय क्यूँ ख़राब कर रहा हूँ.

आ जाओ, लेकिन अगर फिर से ऐसी गलती होगी तो तुम्हारे लिए ट्रेनिंग के दरवाजे बंद हैं” चेतावनी के साथ मैंने आगे की ट्रेनिंग शुरू कर दी.
हाँ बताना तो भूल ही गया, ये सुबह का लेट हुआ हुआ कैंडिडेट नहीं था.

ट्रेनिंग का दूसरा दिन, सुबह सुबह फिर से वही हाजिरी चेक करना,
आज फिर से एक कम, पता नही ये लोग कैसे आगे बढेंगे अपनी जिन्दगी में, मै खुद में ही झल्ला रहा था.

तभी मेरा फोन बजता है “सर गुड मोर्निंग, सर मेरी तबियत बहुत ख़राब है आज मै नहीं आ पाऊँगी” ये इस बार के बैच के एक मात्र लड़की कैंडिडेट का फ़ोन था.
“अगर आप आज नहीं आ पाते हो तो फिर आपको अगले महीने की ट्रेनिंग बैच में मौका मिल पायेगा” मैंने उसको कंपनी के नियम बताने की कोशिश कर रहा था.
“सर लेकिन मेरे लिए ये जॉब बहुत जरुरी है, मै क्या करूँ” उसने अपनी बात पूरी की.
“फिलहाल तो आप दवाई लो और आराम करो” मुझे इंसानियत के आधार पर इससे बेहतर उस वक्त कोई और जवाब नहीं सुझा.
“सर, लेकिन मुझे ये जॉब करनी है” वो इस बार सीधे मुद्दे पर थी.
“ठीक है अगर तुम दवाई लेकर बारह बजे तक आ जाओ तो मै तुम्हे ट्रेनिंग में बैठने की इजाजत दे सकता हूँ”
फ़ोन काटने के बाद मैंने ट्रेनिंग शुरू कर दी.

घडी में डेढ़ बजे, फिर से वही कल वाला डाइलोग, लंच ब्रेक करते हैं, सभी लोग सवा दो बजे फिर से ट्रेनिंग रूम में मिलेंगे.

ढाई बज रहे थे, आज वो फिर से समय पर नहीं आया था, मैंने थोड़ी देर और इंतजार किया और ट्रेनिंग शुरू कर दी.
दो बजकर पैंतालीस मिनट- “मे आई कमिंग सर? सॉरी सर आज मै फिर से लेट हो गया. “ये उसी लड़के की आवाज थी जिसको पहले दिन लेट आने पर मैंने चेतावनी दी थी.

नहीं आप बाहर बैठो, कल सब कुछ समझाने के बाद भी तुम आज फिर से लेट हो, अगर जॉब करने का मूड नहीं है तो आने की क्या जरुरत है, घर पर ही क्यूँ नहीं बैठते हो? मैंने बिना किसी ब्रेक के एक साथ ही सब कुछ बोल गया था.
वो निरुत्तर था, लेकिनं सॉरी कई बार बोल चूका था तब तक.
कंपनी का प्रोसेस और मेरी आदत दोनों उसको अन्दर आने की लिए मना कर रही थी, फिर क्या मैंने उसको बाहर बिठा दिया, और ट्रेनिंग शुरू कर दी.
“सर प्लीज़ उसको आज एक बार और माफ़ कर दीजिये, उसको बहुत जरुरत है जॉब की, घर में अकेला है” बाकि के कैंडिडेट ने लगभग एक साथ यही कहना चाहा.
  
थोड़ी देर सोचने के बाद, मै फिर से वही कर रहा था, जिसको ना ही मेरी कंपनी और ना ही मेरी खुद की आदत परमिशन दे रही थी.
ठीक है उसको बुलाओ, मेरी परमिशन के बाद एक कैंडिडेट उसे बुला कर ले आता है, उसके फिर से कई सारे सॉरी शब्द मेरे कानो तक पहुचे, लेकिन मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, पर वो ये बात तो समझ ही गया था, की अगर ये आगे होगा तो ये उसके लिए कंपनी में आखिरी दिन होगा.

शाम को ट्रेनिंग ख़तम होने के साथ ही एक कैंडिडेट मेरे पास आता है, सर आपसे एक बात करनी थी.
मन तो यही हुआ की पूछ लूँ की अब कल तुम्हे छुट्टी चाहिए क्या ? पर नहीं पूछा, पर तैयार था और पूरी तरह आश्वश्त भी था की बात यही है.

और फिर वो अपने स्मार्ट फ़ोन पर एक मेल दिखाते हुए बोला, सर मेरा कल एक एग्जाम है, बारह बजे तक आ जाऊंगा. अगर नहीं गया तो पुरे साल की मेहनत खराब हो जाएगी. क्या करूँ आप बता दीजिये ?
तुम इसको पहले भी तो बता सकते थे, ये एग्जाम आज ही तो नहीं आया होगा ना ?
सर मुझे इस बात का डर था की कहीं फिर मुझे इस जॉब के लिए मना ना कर दिया जाये, और ये जॉब मेरे लिए बहुत जरुरी है.

फिर क्या एक बार फिर वही समझौता, बारह बजे तक आ जाऊंगा सर, पक्का से.
थैंक्स यू सर, उसके ये अंतिम वर्ड मेरे हाँ बोलने के बाद आये थे.

तीसरा दिन, एक दिन पहले मै अपना जन्मदिन मनाने के बाद फिर से सभी के सामने उपस्थित था.
सर कैसा रहा आपका जन्मदिन, पार्टी कहाँ दी थी आपने, आपने हमें तो बुलाया भी नहीं, फ़ोटोज कहाँ हैं? सारे सवाल और फिर मेरा पिछले दिन की सारी स्टोरी उन्हें बताना, शायद पहले दश मिनट यही सब चलता रहा.
ट्रेनिंग शुरू होती है और घडी फिर से डेढ़ बजाती है, और सब कुछ वैसे ही होता है जैसे पहले दो दिन हुआ था.
“पैंतालीस मिनट के बाद मिलते हैं सभी फिर से” मैंने खाने के लिए ब्रेक देते हुए बोला.
दो बजकर बीस मिनट, यार वो आज फिर से लेट है, कुछ कैंडिडेट्स आपस में आपस धीरे धीरे यही बातें क्र रहे थे.
“बेटा आज तो गया गया वो”
“यार और क्या मजाक ही बना रखा है उसने तो आज भी लेट है” मै अपने लैपटॉप में कुछ लिखने में व्यस्त था लेकिन मेरे कान ट्रेनिंग रूम के हर आवाज को सुनने की कोशिश कर रहे थे.

“दो बजाकर बाईस मिनट” मे आई कमिंग सर?वो बुरी तरह हांफते हुए दरवाजे पर आया और उसकी लगभग कांपती हुई आवाज़ मेरे कानों में पहुंची.

अब आपको आने की जरूरत नहीं है, आप बाहर बैठ सकते हैं, मैंने आपके खिलाफ अभी अभी एक मेल अपने सीनियर्स को भेजा है, और अब आपको तीसरी बार नियम तोड़ने के वजह से ट्रेनिंग से निकाला जा रहा है. कृपया बाहर जाकर अपना रिजाइन दे दीजिये.” मेरी बाते ख़तम होते ही मैंने ट्रेनिंग रूम बंद किया और ट्रेनिंग शुरू कर दी.

मुझे नहीं लगा था कि मेरी बातों को वो ढंग से सुन पाया था, लेकिन हाँ समझ जरुर गया था.
उसने ट्रेनिंग रूम खोलने की कोशिश की, उसे शायद कुछ बोलना था उसे लेकिन मैंने पहले से ही दरवाजा अन्दर से बंद कर दिया था.

मेरे बाहर जाने के इशारे ने उसे बतला दिया था कि आज मै कुछ भी सुनने के मूड में नहीं हूँ.
ट्रेनिग शुरू हो गई, वो बाहर सोफे पर बैठ कर बार बार मुझसे बात करने की कोशिस कर रहा था. उसके इशारे बता रहे थे, वो मुझसे कहने की कोशिश कर रहा है कि “सर प्लीज एक बार मेरी बात सुन लीजिये.”
मै अपनी ट्रेनिंग में व्यस्त हो गया, लेकिन मेरे मोबाईल पर लगातार कुछ सन्देश आ रहे थे, ये शायद उसी के थे जो वो बोल नहीं पाया था उसे मोबाईल पर मेसेज कर रहा था.
मैंने जानबूझ कर मोबाईल की तरफ ध्यान नहीं दिया, मन नहीं था, की आज कुछ भी सुनु उसकी तरफ से.
लेकिन थोड़ी देर बाद चाय के ब्रेक में, मै जैसे हो बाहर आया, वो मेरे पास भाग कर आया, सर प्लीज़ मुझे माफ़ कर दीजिये, मुझे इस जॉब की बहुत जरुरत है, उसकी आँखें भरी थी, जैसे वो अभी रो देगा.
अब मै शांत था, क्यूँ की मुझे पता था की अब कुछ भी नहीं हो सकता, मेल पहले ही जा चुकी थी, और उसका फिर से ट्रेनिंग में आना जैसे नामुमकिन ही था.
मैंने यही बात उसको बहुत समझाने की कोशिश की, और वो फिर शांत हो गया जैसे ये बात वो खुद भी समझ गया हो.

ठीक है, लेकिन मै फिर से इस कंपनी में आना चाहूँगा,
आ सकते हो अगले महीने फिर से हमें लोंगो की जरुरत पड़ने वाली है, मैंने अपनी बात पूरी की. और फिर से ट्रेनिंग रूम की तरफ कदम बढ़ा लिए.

सर उसकी आवाज़ ने मुझे फिर से रोका, वो मेरे पास आया,

“बिलेटेड हैपी बर्थडे सर” उसकी हाथों में चोकलेट थी, जो वो मेरी तरफ बढ़ाते हुए एक साँस में ही बोल गया था.
सर आज मै लेट नहीं होता, लेकिन सोचा कल आपका बर्थडे तो सर के लिए चोकलेट लेकर चलता हूँ, दूकान खोजने में देरी हो गई.

मै चुप था, समझ में नहीं आ रहा था की कैसे थैंक्स बोलूं.
वो बस सात मिनट लेट था आज, और मै पहले पांच मिनट में ही ये तय कर चूका था की आज उसका आखिरी दिन है.
मैंने अपने आपको, एक पल को उसकी जगह पर रखकर सोचने की कोशिश की, कैसा लगा होगा उसको, जब वो ये चोकलेट खरीद रहा होगा कि सर कैसे खुश होंगे, और ये अब ये मुझे उस समय दे रहा है जब उसके हाथ में उसकी जॉब नहीं है, और हाँ उसी ट्रेनर को जो चाहता तो उसकी जॉब बचा सकता था.

मैंने घर जाकर उसके सारे मेसेज पढ़े जो उसने मुझे दिन में भेजे थे. जिसमे उसने वो सब कुछ लिखा था, जो अगर मै पहले पढता तो शायद मै वो चोकलेट नहीं ले पाता.
      
उसको सच में नौकरी की जरुरत थी, लेकिन ये उसके लेट होने का लगातार तीसरा दिन था.
और मै उस दिन कंपनी और खुद के बनाये नियम को तोड़ने के किसी भी मूड में नहीं था.

Saturday 2 February 2013



जागते रहो, जागते रहो”. ये शब्द अचानक मेरे कानो में तब पड़े जब एक भयानक सपने ने मेरी रात की नींद उड़ा दी. इसके बाद तो कितनी बार सोने कि कोशिश की लेकिन पूरी रात नींद नहीं आई. वो सर्दी से ठिठुरती रात में चौकीदार की ये आवाज मेरे कानो में लगातार पड़ रही थी जिससे मुझे एक अलग से साहस का एहसास हो रहा था. लेकिन मुझे सबसे अजीब ये लगा कि आज से पहले तो मैंने कभी इस चौकीदार को पहरा देते नहीं सुना. सुबह होते ही पिता जी से पहला सवाल यही था, कि अचानक हमारे गाँव में ये चौकीदार की जरुरत क्यूँ पड़ गई? पिता जी ने कहा कि बेटा अभी पिछली रात ही बगल के गांव में कई चोरियां हुयीं है, तो सारे गाँव वालों ने मिलकर चौकीदार रख लिया है जो रात के समय गाँव मे पहरा दिया करेगा. लेकिन पिता जी ये चौकीदार कब तक रहेगा? मैंने एक और सवाल कर दिया था. बस जैसे ही चोरियां होनी बंद हो जायेगी और पुलिस चोरों को पकड़ लेती है, चौकीदार हटा लिया जायेगा. पिता जी ने मुझे सिक्यूरिटी प्लान और रिजन दोनों ही समझा दिया था. खैर, मैंने अब आगे कोई सवाल नहीं किया, लेकिन बीती रात के सपने ने और चौकीदार के जागते रहोवाले नारे ने मुझे सच में जगा दिया था. अब और कई सारे सवाल मेरे कानो में गूंज रहे थे जिनके उत्तर मै खुद से खोजने कि कोशिश कर रहा था, पहला तो इस चौकीदार की जरुरत कुछ चोरियां होने के बाद ही क्यूँ पड़ी? और ये चौकीदार का काम जब रात को पहरा देना का है जिससे की गांव के लोग चैन की साँस सो सकें तो ये, “जागते रहो जागते रहोवाला नारा क्यूँ लगाता है, अगर हमें ही जागना है तो फिर इसकी जरुरत ही क्या है? पहले सवाल का जवाब तो बहुत आसान था, क्यूँ कि ये आम बात है कि दवाईंयों कि जरुरत बीमार होने के बाद ही पड़ती है. रही बात दूसरे सवालों की तो, आज मुझे समझ में आता है कि ये सवाल तो हैं ही नहीं, ये तो उत्तर है. क्यूँ कि जागते रहोवाला नारा गांव की सोती हुई जनता एक जागरूक अभिव्यक्ति थी जो रात को भी उन चोरों को ये अहसास कराती थी कि इस गांव में चोरी करना आसान नहीं है क्यूँ कि ये लोग सोते हुए भी जाग रहें है. पिछले महीने हुई दिल दहला देने वाली अमानवीय घटना ने पुरे देश को शर्मसार कर दिया. अरे हाँ शर्मशार ही नहीं नहीं जागरूक भी. देश के कोने कोने में, लोंगो ने शाशन प्रशाशन के खिलाफ नारेबाजी की, केंडल मार्च किये, धरने दिए साथ ही, फेसबुक से लेकर मोबाइल पर सैड स्माइलीज भेजे गए. हर एक टीवी चैनल्स, समाचार पत्र, पत्रिकाओं में इस घटना पर थू थू करती एक मुहीम दिखी. और अब उसका परिणाम भी दिख रहा है, देश कि सरकार ने फास्ट ट्रेक कोर्ट में इस केस सुनवाई शुरू कर दी. लेकिन सवाल ये है कि अगर सच में पूरा देश इस मुहीम में शामिल था तो उसके बाद भी ये आये दिन बलात्कार के न्यूज क्यूँ आ रहीं हैं, कौन हैं ये लोग? और फिर क्या हर एक अपराधी को सजा दिलवाने के लिए हर बार इतनी बड़ी मुहीम हो सकती है? नहीं. सच तो यही है कि इस दौड़ती भागती जिंदगी में किसी के पास इतना समय कहाँ है और पिछले अनुभवों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि या तो हम सब कुछ बहुत जल्दी भूल जाते हैं या हमारा जोश खतम हो जाता है. अगर सच में ऐसी घटनाओं को रोकना है तो हमें जंतर मंतर के साथ साथ अपने दिलों में और घरों में मरती हुई नैतिकता को बचाना पड़ेगा. बसुधैव कुटुम्बकम तो हम हमेशा बोलते रहते है लेकिन क्या सच में घर की दहलीज से बाहर निकलने के बाद किसी को अपने परिवार का हिस्सा समझ पातें है, या हमें कोई पराया अपना भाई, अपनी बहन, माँ या बेटी जैसा लगता है. समय है इन सवालों के उत्तर खोजने का और सोते हुए जागने का. जागते रहो जागते रहो

(यह आर्टिकल 15/01/2013 को दैनिक समाचार पत्र Inext(Dainik Jagran) में प्रकाशित हो चूका है. कृपया यहाँ क्लीक http://inextepaper.jagran.com/c/735299  )

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