Sunday 1 June 2014



 
                                                               (चित्र - गूगल)

शक्ति मिल में हुए रेप के दोषियों को सजा-ऐ-मौत की खबर की स्याही अभी सूखी भी नहीं थी कि, हमारे देश के दो कथित नेताओं ने उन दोषियों की याद में राजनितिक मोमबत्तियां जलानी भी शुरू  कर दी | एक ने कहा कि “लड़कों से तो गलती हो ही जाती है, ऐसे में उनको फांसी देना गलत बात है, और अगर मेरी सरकार शाशन में आती है तो बलात्कार विरोधी नियमों में जरुर तबदीली होगी” | देश के मायानगरी में बैठे नेता जी ने तो सारी हदें जैसे पार ही कर दी कहा “रेप के लिए पुरुष के साथ साथ महिलाओं को भी फांसी देनी चाहिए, केवल पुरुष ही इसके लिए जिम्मेदार नहीं होतें हैं”| जय समाजवाद का नारा लगाने वाले अगर इस तरह से बातें करतें हैं तो चुनावी माहौल की रोटियों को सेंकनें के बाद अगर ये लोग सत्ता में आ जाएँ, तो किस तरह का समाजवाद आएगा इसकी सोच मात्र से रूह काँप जाती है | कहतें हैं इन्सान वही बोलता है जिस बात पर विश्वास करता है और जिस बात पर विश्वास करता है, करता भी वही है | खैर इसकी बानगी तो उत्तर प्रदेश में दिख ही जाती है | आज ये आर्टिकल लिखते हुए ही टीवी में दो ख़बरें आयीं वो भी उत्तर प्रदेश से ही “दबंगों ने एक नाबालिक को छेड़खानी के बाद जिन्दा जला दिया, दूसरी- एक मजदूर महिला के साथ चार दंबंगो ने बलात्कार किया, तफ्तीश के लिए गई पुलिस ने दबंगों के घर नास्ता किया” |  कहाँ है समाजवाद और कैसे हो सकता है ये समाजवाद भला जहाँ समाज के एक सबसे शक्तिशाली स्तम्भ “स्त्री” के स्वाभिमान को सरेआम तार तार कर दिया जाता है और समाजवाद के प्रहरी कहने वाले लोग कहतें हैं की “लड़कों से गलती तो हो ही जाती है” | फिर ऐसे समाज में फूलन देवी जैसे लोग पैदा होतें हैं तो इसमें उनकी गलती ही क्या है ? और जब नेता जी की सोच ऐसी है तो फिर पुलिस दोषियों के घर जाकर चाय नहीं पीयेगी तो और क्या करेगी | अब पुलिस को मरना है क्या किसी को गिरफ्तार करके और भला गिरफ्तारी क्यूँ बच्चों की गलती के लिए कोई गिरफ्तार भी करता है क्या?

लेकिन कभी उसके दर्द को भी करीब से देखने की कोशिश कीजिये जिसके साथ ये कथित अमानवीय घटना घटी है | कैसे तार तार हो जाती है किसी की अस्मिता जीवन भर के लिए, जिसे आप मात्र एक छोटी सी गलती कहतें हैं | मुझे नहीं लगता की बलात्कार के पीड़ित कभी दोषियों को सज़ा मिलने के बाद भी इस अमानवीय घटना से बाहर आ पातें होंगी | खैर ये उत्तर प्रदेश के समाजवाद की पहली घटना नहीं है | जब दो जून 2005 में इसी समाजवादी नेता की सरकार एक दलित महिला (मायावती) के समर्थन लेने से गिरी थी तो इन्ही समाजवादियों ने मायावती के खिलाफ लखनऊ के स्टेट गेस्ट हॉउस में बेशर्मी का कितना बड़ा नंगा नाच खेला था ये जग जाहिर है | खैर दर्द तो उसी को पता चलता है ना जिसके चोट लगी होती है | इसे एक बहुत बड़ी विडम्बना ही कह सकतें हैं कि दो साल पहले सोलह दिसंबर को दिल्ली में चलती बस में हुई बलात्कार की शिकार महिला भी उत्तर प्रदेश की ही रहने वाली थी, जिसके समर्थन में पूरा देश उबल पड़ा था | घरों से लेकर दिल्ली के जंतर मंतर तक आन्दोलन किये गए, मोमबत्तियां जलाई गईं और बुझ भी गई | लेकिन रेप होते रहे और होते रहेंगे अगर हमारे देश के कथित नेताओं यही की कुंठित मानसिकता होगी | शायद अब जरुरत है की इन राजनितिक विचारधाराओं  के खिलाफ आवाज़ उठाई जाएँ, मोमबत्तियां फिर से जलनी चाहिए और जब बूझें तो ऐसे की ये लोग कभी सत्ता में ना आ पायें | तब तक के लिए मेरी तरफ से इन नेताओं को बस यही बोलना है “गेट वेल सून नेता जी” ||    

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