Thursday 17 August 2017


आज मैंने जब उसे बाकी दुनिया से बेखबर अपनी आजादी का जश्न मनाते देखा था तो ठिठक गया एक पल को, मन में हुआ कि जाकर शरीक हो जाऊं मैं भी, लेकिन साथ वालों के साथ ने मुझे आगे जाने से मजबूर कर दिया और मैं अपने धुन में व्यस्त रहा ।
लेकिन बेहतर बात ये हुई कि मैं फिर से लौटा उसी रास्ते से और इस बार रुक ही गया, मेरे साथ साथ मेरे दोस्त की 3 साल की बच्ची थी जो मुझसे पहले रुकी और उस तरफ देखने लगी, शायद वो द्वंद के हाथों मजबूर नही थी।
खैर उसके रुकते ही मुझे भी हिम्मत हुई और मैं उसे लेकर उस तरफ बढ़ गया जिधर वो लड़की उस दीवाल को रंग रही थी, वो ऊबड़ खाबड़ दीवाल जो बीच बीच में सीमेंट के गिर जाने से चितकबरी और भद्दी हो गई थी ।
मुझे और उस बच्ची को अपने तरफ आते देखकर वो हमारे तरफ पलटी और बच्ची से प्यार पूछा, क्या आप भी रंगोगे दीवाल ?
बच्ची शरमा रही थी, शायद वो तैयार नही थी अचानक इस ऑफर के लिए । वो पेंटर पीछे पलटी और अपने पास रखे सामान से एक पतला सा ब्रश निकाल के बड़े प्यार से उस बच्ची को देते हुए बोला, आप भी दीवाल रंगों न, चलो साथ साथ रंगते हैं । बच्ची ने थोड़ी ना नुकुर के बाद शरमाते हुए ब्रश पकड़ लिया । खैर इन सारे एपिसोड के बीच मेरे मन में कई सवालों ने जन्म ले लिया था ।
कि आज 15 अगस्त को जब पूरा भारत आजादी आजादी चिल्ला रहा है, मना रहा है, कसमें ले रहा, तिरंगे के आगे सर झुका रहा है, फेसबुक पर पोस्ट लिखे जा रहा है, और इन सबसे इतर इस बात की खुशियां मना रहा है कि कितना अच्छा है इस साल का 15 अगस्त जो वीकेंड के साथ आया है और मंडे के छुट्टी के साथ कुल चार छुट्टियां मिल गईं । वही ये लड़की इन सबसे इतर कनॉट प्लेस के चकाचौंध जिंदगी के बीच एक पुरानी और भद्दी हो चली दीवार को अपने कलर से रंगीन करने की कोशिश रही है, उसे इस बात से फर्क नही पड़ रहा था कि आते जाते लोग उसे घूरते हुए पता नही क्या क्या कयास लगाए जा रहे हैं, वो इस बात से अनजान थी कि उसके उम्र के लोग कनॉट प्लेस में ज्यादातर राजीव चौक के सेंट्रल पार्क से लेकर मैकडी, बर्गर किंग, कैफे कॉफी डे में एक हाथ में कॉफी मग लिए या कोल्ड्रिंक की बॉटल के साथ मिलते हैं । वो इस बात से खुश थी कि ये दीवाल जो अभी तक चलते फिरते लोगों के लिए महज पान और गुटका खाकर थूकने के काम आती थी वो उस दीवाल रंगकर एक प्यारी सी जिंदगी देने की कोशिश कर रही थी, चाहे वो उसमें जितनी भी सफल होती ।
उसकी देशभक्ति किसी राष्ट्रगान और राष्ट्रगीत की मोहताज नही थी वो बस अपने हिस्से की कवायद में जुड़ी थी जिससे देश सुंदर हो सके ।
कोमल नाम बताया उसने अपना।
कोमल पेशे से एक इंजीनियर हैं, पैशन से एक आर्टिस्ट हैं और इस तरह के नेक काम जाने कबसे करती आ रहीं हैं।कोमल वीक डेज में हमारे और आपकी तरह नौकरी करती हैं और वीकेंड में लावारिश हो चली दीवारों को रंगकर जिंदगी देने की कोशिश करती हैं ।
कितना अजीब है ना आजादी और देशभक्ति के नाम पर हम सोशल मीडिया में पूरे दिन वैचारिक उल्टियां करते रहते हैं, दूसरों को ज्ञान देते रहते हैं, राष्ट्र निर्माण के ठेकेदार बनकर ठेका किसी और को देते रहते हैं वही कोमल जैसी लोग चुपचाप, खामोशी से राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान दे रही हैं ।
शायद आज इससे बेहतर देशभक्ति नही देख पाया था।

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