Wednesday 6 January 2016


नेताओं के विचार लेने के मामले में मिडिया की अपनी प्री-डिफाइंड लिस्ट होती है, और मुझे लगता है कि अगर कोई जब मीडिया हाउस ज्वाइन करता है तो ट्रेनिंग के दौरान उसे सपथ दिलाया जाती है कि
"मैं TRP की कसम खाकर कहता हूँ कि मेरी इस नौकरी के दौरान अगर किसी ज्वलंत मुद्दे पर किसी नेता, अभिनेता का विचार लेना पडेगा तो मैं इस कंपनी की दी हुई लिस्ट के अलावा किसी और से बात नहीं करूँगा और TRP के मामले में किसी प्रकार का समझौता नहीं करूँगा" ।

मतलब इंटरव्यू लेने के मामले में रिपोर्टर कतई जेहादी टाइप हो लिए रहते हैं " जैसे किसी मंदिर की कोने की एक ईंट निकल गई तो योगी आदित्यनाथ के तरफ माइक लेकर भागना है, और पूछना होगा कि सर आपको क्या लगता है कि ट्रैक्टर कहीं दूसरे धर्म का ड्राइवर तो नहीं चला रहा था न, ये एक ईंट निकालकर आपके धर्म की नीव कमजोर करने की कोई साजिश तो नहीं है ।

अगर किसी मस्जिद के कोने पर किसी ने कमला पसंद खाकर थूक दिया है तो इंटरव्यू ओवैशी का बनता है "सर आपको क्या लगता है कि मस्जिद के आस पास जो हिंदुओं ने पान की दूकान लगा रखी ये कहीं उन्ही की साजिश तो नहीं है ये आपके धर्म पर भगवा कलर की थूक से आपके धर्म को नीचा दिखाने की नापाक कोशिश तो नहीं है न ?"

बात आगे की करते है सोचिये मायावती की किस्मत भी कमाल की है अगर तीसरा विश्वयुद्ध भी छिड़ जाए तो एक मिडिया वाला मायावती के पास नहीं जायेगा लेकिन सवर्णों के खेत में लगे कटीले तार से अगर किसी दलित की धोती फट गई तो मिडिया सबसे पहले मायावती को फोन लगाएगी "मैडम आपको नहीं लगता कि सवर्णों ने जानबूझकर कटीले तार बाहर की तरफ लगा रखे हैं जिससे कि दलित की धोती फ़टे और दलितों की इज्जत सरेआम उछाली जा सके" ।

मुझे लगता है कि मिडिया किसी घटना के बाद की घटना के लिए एकलौती जिम्मेदार होती है । TRP एक यज्ञ है, नेता उसमे डाले जाने वाले घी, और आहुती तो हमेशा से जनता की ही दी जाती रही है ये आपको बताने की जरूरत नहीं है ।

Monday 4 January 2016




तमीज का डेमो
अभी कुछ देर पहले की ही बात है, मैंने एक स्नैक्स पॉइंट पर लंच किया और फिर एक चॉकलेट कप लेकर खाने लगा, स्टॉल बाहर की तरफ ही लगा था, ये बच्चे मेरे पास भागते हुए आये और चॉकलेट मांगने लगे जो लगभग आम बात उन बच्चों के साथ जो अपना बचपन फुटपात पर जीते हैं और जीविका कूड़े में खोजते हैं ।
तभी रेस्टोरेंट का ऑफिस बॉय इनको भगाने के लिए आया और मारते हुए भगाने लगा हाँ साथ में कुछ गालियां भी दी ।
अरे अरे क्यों मार रहे हो भाई - मैंने उसे रोकते हुए बोला 
अरे सर आप नहीं जानते हैं बहुत बद्तमीज हैं ये बस मारने की भाषा समझते है - ऑफिस ब्यॉय
लेकिन इसमें इनका क्या दोष है, तुम तो मुझे निहायत खनादानी लग रहे हो और जब तुममे तमीज नहीं है तो इनमे कहाँ से होगी जिसने बचपन संभालते हुए कूड़े में ही अपनी जिंदगी खोजी और तुम्हारे जैसे लोगों से रूबरू हुआ ।
मैंने चार केक पुडिंग्स और आर्डर दिया और बच्चों में बाट कर साथ ही खाने लगा ।
मेरे आर्डर देने के बाद उनके चेहरे बिल्कुल उतनी ही ख़ुशी थी जितनी गर्ल फ्रेंड के प्रोपोजल एक्सेप्ट करने पर आशिक की होती है ।
और लगभग सभी ने एक साथ ही मुझसे बोला "थैंक्यू भइया"
मैंने उनसे इन शब्दों की बिलकुल उम्मीद नहीं की थी क्यों की उनमे तमीज का ना होने की बात मैं भी मान रहा था ।
लेकिन "थैंक्यू भइया" ने मुझे अंदर से झकझोर दिया और एहसास हो गया की तमीज तो कमाई जाती है ।
मैंने ऑफिस बॉय की तरफ देखा तो वो आँखें नहीं मिला पा रहा था क्यों की
"तमीज का डेमो ही गजब का था"
मात्र 80 रूपये में तमीज़ और खुशियाँ दोनों खरीद ली थी मैंने ।
प्रवीण)

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