जाने कब बड़े हो गए, हम सभी की जिंदगी में ये एहसास अक्सर आता रहता है और खास बात ये हैकि पता ही नहीं चलता की कब हो गया इतना सब कुछ, जाने कब, हाफ पैंट से फुल पैंट तक आ गये, पापा के साथ बाल कटवाने के लिए जाने वाला बच्चा, जाने कब सैलून में चिपकाये हुए, तमाम फ़िल्मी हीरोज के फोटो वाली हेयर स्टाइल को कॉपी करने लगता, जाने कब स्कूल बैग में रखी किताबें कम होने लगी और उनकी जगह कॉलेज की चंद किताबों ने और नोटबुक्स ने ले ली,
जाने कब
चंद्रकांता और शक्तिमान से तेरे नाम और आशिकी फिल्मों तक पहुच गए |
जाने कब आकाश
में सप्तर्षि मंडल और ध्रुव तारे को खोजते हुए, चाँद और चांदनी को समेटे हुई इश्क और माशूका
वाली शायरियां समझ में आने लगी,
जाने कब माँ के “बाज़ार में खो जाओगे” से लेकर “बाजार से ये सारे सामान लेते आना”
वाला सफ़र पूरा कर लिया, जाने कब छोटी छोटी नोक झोंक पर भाई के हाथों
थप्पड़ खाने वाला वो बच्चा, जो तब तक रोता रहता था जब तक पापा या मम्मी न
सुन लें,
से लेकर, “बच्चे नहीं रहे अब तुम, तुम्हारे आखों में आंसू अच्छे नहीं लगते”
तक आ गए. जाने कब रात में सोते हुए चारपाई से
निचे गिर जाने वाला वाला बच्चा, ये समझने लगता है की चारपाई के किस तरफ बैठना
चाहिए, जब पहले से ही चारपाई पर बड़े बुजुर्ग बैठों हों, जाने कब मेले में पापा का हाथ पकड़कर चलने वाला
वो बच्चा जो हर खिलोने को खरीदने की जिद करता था, से लेकर “अरे खिलौनों में क्यूँ पैसे बर्बाद करना, थोड़ी
देर में तो टूट जाते हैं ये, तक आ जाता है |
जाने कब वो अपनी
कॉपी और किताबों को खरीदने के लिए मिले पैसों में से कुछ पैसा बचाकर कॉस्को की
क्रकेट बाल खरीदने वाला बच्चा, अपनी पढाई पूरी करके गाँव के छोटे से रेलवे
स्टेशन पर जाने कितने सपनों के साथ दिल्ली के लिए टिकेट खरीद रहा होता है |
जाने कब, दिनभर में चार बार माँ के किचेन से खाने वाला
बच्चा सुबह शाम दो वक्त खाकर जीने लगता है और जाने कब वो चाय में रोटी और बिस्किट
भिगाकर जीभर के पेट भरने वाला बच्च्चा अब चाय की तलब का शिकार हो जाता है | जाने कब वो बच्चा, जो घर में अरहर की दाल, गोभी, चावल को नापसंद करता था, या अपनी
शर्तों पर खाता था, आज
वो दाल चावल को लगातार हफ़्तों तक खा लेता है क्यूंकि उसे और कुछ बनाना नहीं आता, जाने
कब वो स्कूल से निकलने के बाद दौड़ते हुए अपनी साईकिल निकालकर सबसे तेज रफ़्तार से
चलाने वाला बच्चा शहर आकर दौड़कर बसें पकड़ना शुरू कर देता है | बाहर किसी का दिया हुआ मत खाना, ये सुनकर घर से निकला हुआ वो बच्चा जाने कब, लंच के वक्त दोस्तों के बीच एक टिफिन से रोटी, तो दुसरे टिफिन से सब्जी खाने लग जाता है |
जाने कब वो अपने
पॉकेट में रखे हुए अपने हर पैसे का हिसाब रखने लगता है जिसने शायद ही कभी घर में
पैसों को इतने कीमती नज़रों से देखा हो | वो बच्चा जो पास में पैसे आते ही सोमोसे, जलेबी, और चाट की दुकानों पर मिलता था आज सेलेरी आने
से पहले ही अपनी सेविंग प्लान करके बैठा होता है, वो जाने कब इतना बड़ा हो जाता है की सड़क पर हो
रहे लड़ाई तकरार से मुह मोड़कर आगे बढ़ जाता है जो बचपन में उस हर सीन पर तालियाँ
बजाता था जिसमें हीरो गुंडों की पिटाई करता था |
रविवार वाली
छुट्टियों के दिन बिना खाए पिए, सुबह से लेकर शाम तक क्रिकेट के बल्ले के साथ
बिताने वाला वो बच्चा जाने कब रविवार को सुबह सुबह अपने कपडे धोकर फिर से काम पर
निकल जाता है क्यूँ की उसके बॉस ने उससे कहा है की इंसेंटिव कमाना है तो ज्यादा
काम करना पड़ेगा | जाने
कब वो बच्चा जो कई बार पढाई से बचने के लिए, या काम से बचने के थका होने का बहाना बना लेता
था आज वो “थकना
मना है” को
अपना आदर्श वाक्य बना लेता है |
हाँ, जिंदगी में हम इतने मशगुल हो जाते हैं की जाने
कब इतना सब कुछ हो जाता है पता ही नहीं चलता, बिलकुल वैसे ही जैसे खबर भी नहीं लगती और वो
बच्चा इतना बड़ा हो जाता की बचपन की बातें याद करके कहने लगता है, कितने हसीन थे वो दिन |
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