Wednesday 28 November 2012




उस समय हर रोज मेरे दिन की शुरुवात पुजारी जी की घंटी की आवाज से होती थी, और फिर कुछ देर बात लाउडस्पीकर पर बजने वाली आरती और भजन से तो जैसे सारा वातावरण भक्यिमय हो जाता था. ये मधुर आवाजे मेरे ही नहीं ना जाने कितने लोंगो के लिए अलार्म घडी की तरह थी. इन आवाजों में खासियत ये थी कि चाहे आप भजन कीर्तन से जागें या मस्जिद में बजने वाले अजान से आपका मन मस्तिस्क अपने आप अपने ईष्ट को याद करके झुक जाता था. घर के रास्ते में पड़ने वाला पुराना मंदिर अब कई बड़ी बिल्डिंग्स के बनने से ढक गया लेकिन उसके शीरे पर लगा हुआ लंबा त्रिशूल और लंबी सी पाईप में लगे हुए झंडे को देखकर मंदिर में भगवान शिव की मूर्तियों का एहसास बखूबी हो जाता है. हमारे मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे के ऊपर लगे हुए झंडे, गुम्बदों और लाउडस्पीकर पर बजते भजन कीर्तन और अजान को सुनकर मुझे ये तो समझ में नहीं आता की इनके पीछे कितने राज लेकिन इतना जरुर समझ आता है की ये कुछ और नहीं बल्कि मानवता को प्रचार और प्रसारित करने के लिए मार्केटिंग का एक तरीका है. आज कुछ ऐसा ही मार्केटिंग का एहसास मुझे तब हुआ जब मैंने आमिर खान के शो सत्यमेव जयते के लिए होते देखा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि इस शो की जबरदस्त मार्केटिंग ने इसके द्वारा उठाये गए सामाजिक मुद्दों को करोडो लोंगो तक पहुंचा दिया.

इस शो को देखने के बाद मुझे आज के दर्शको के बदलते हुए स्वाद का एहसास हुआ. क्यूँ कि आज के पहले भी शिक्षा, दहेज, भ्रस्टाचार और महिला उत्पीडन जैसे मुद्दों पर ना जाने कितनी मुवियाँ और धारावाहिक बन चुके हैं लेकिन कभी भी उनका इतने व्यापक रूप से परिणाम देखने को नहीं मिला. अब शायद हमें अपने अपने समाज की कुरीतियों को समझने और इनसे लड़ने के लिए बड़े ब्रांड और उससे भी ज्यादा बड़ी मार्केटिंग की जरुरत पड़ने लगी है. और अगर ये सही है तो इस तरह के शो की संख्या और भी ज्यादा होनी चाहिए.

लेकिन मुझे दुख तो तब हुआ जब हमारे समाज के कुछ बुद्धिजीवियों ने इसकी भी आलोचना कर डाली. अभी कुछ दिनों पहले ही मेरे फेसबुक अकाउंट पर मैंने एक टैग देखा- इनक्रेडिबल इंडिया- हमारे देश में Rs 250  ना होने से एक बच्चा मर जाता है और यही बात बताने के लिए आमिर खान ढाई लाख लेते हैं. वैसे आलोचना करना तो हम अपना जन्मशिद्ध अधिकार समझते है और हम इस कला में इतने पारंगत है कि विषय चाहे कुछ भी हो हम कुछ ना कुछ ढूँढ ही लेते हैं, जैसे अभी पिछले ही हफ्ते मै एक दोस्त के साथ उसको शू खरीदवाने के लिए एक ब्रांडेड शोरूम में गया, जूता पसंद भी आ गया लेकिन कीमत पॉकेट से बड़ी थी तभी मेरे दोस्त को याद आया कि बरसात के मौसम में तो लेदर के जूते खरीदना अच्छा नहीं  होता हैं चल बाद में खरीद लेंगे.
पता नहीं ये हमारी ये कला तब कहाँ चली जाती जब हमारे तथाकथित अरबपति बाबाओं के दर्शन के लिए हमारी जनता अपनी समस्याओ के लेकर घंटो खड़ी रहती है और हजारों रूपये खर्च कर देती है ? इस नए टीवी शो ने ये प्रूव कर दिया है की हमारी जनता को जागरूक करने का तरीका बदलना पड़ेगा और हर सामाजिक कार्य जो कुरीतियों से लड़ने और मानवता को बचाने के लिए किये जा रहें है, उन्हें अब ब्रांड और मार्केटिंग के जरुरत पड़ने लगी है चाहे वो दैनिक अखबार, इन्टरनेट या किसी टीवी शो के माध्यम से हो. आखिर हमारे देश को पोलियो मुक्त बनाने में योगदान करने वाली लाइन दो बूँद जिंदगी केऔर अमिताभ बच्चन के ब्रांड इमेज को कैसे भूल सकते हैं. शायद शदी के इस महानायक कि वजह से ही हम देश को पोलियो मुक्त बनाने कि लड़ाई में सक्षम हो पायें है और ये अमिताभ के ब्रांड इमेज का ही जलवा है कि आज गांव गांव तक हर कोई पोलियो के खिलाफ लड़ाई में शामिल है.
(यह आर्टिकल 11/09/2012 को दैनिक समाचार पत्र Inext(Dainik Jagran) में प्रकाशित हो चूका है. कृपया यहाँ क्लीक http://inextepaper.jagran.com/56247/INEXT-LUCKNOW/11.09.12#page/11/2 करें

0 comments:

Post a Comment

Followers

The Trainers Camp

www.skillingyou.com

Join Us on Facebook

Popular Posts