1st
ओक्टुबर, आफिस
में सारे लोग खुश थे ऐसा नहीं था कि दीवाली पर आने वाले बोनस की खबर अभी लग गयी हो
बल्कि इसलिए कि अगले दिन 2 ओक्टुबर
था. सभी अपने अपने छुट्टियों की प्लानिंग कर रहे थे, मूवी, ओउटिंग, पार्टी, रिलेटीव विजिट इत्यादि. लेकिन इन सबके बीच भी कुछ इंसान खुश
नहीं थे. मिश्रा जी – यार
कितना अच्छा होता ना अगर गाँधी जी एक ओक्टुबर को पैदा होते तो, तीन दिन की छुट्टी एक साथ मिल जाती. शनिवार और रविवार की तो पहले से ही है. वर्मा जी की तो कुछ अलग
ही समस्या थी -यार साल में एकबार तो 2 ओक्टुबर
आता है वो भी मंगलवार को पड़ रहा है मै नानवेज भी नहीं खा सकता. अब मुझे ये समझ में
नहीं आ रहा था कि वर्मा जी को किसके जन्मदिन से तकलीफ थी गाँधी जी के या हनुमान जी
के .
फिर
क्या घढ़ी में 6.30 बजते मैंने रवि से बोला, भाई आज मै अपने गाड़ी लेकर नहीं आया हूँ मुझे हाई वे तक ड्रॉप
कर देना, “सोरी यार आज मै उधर से नहीं जाऊंगा, कल ड्राई डे है ना तो आज ही फूल स्टोक लेना पड़ेगा नहीं तो कल
कहीं मिलेगा नहीं” रवि
ने समस्या जताई. अब तो मुझसे भी रहा नही गया सोचा कितना अजीब है ना, कि वैसे तो हर
जन्म दिन पर लोग पार्टियां करते हैं पर इतने बड़े जन्मदिन को सरकार ने ड्राई डे
घोषित कर रखा है.. और आज इसी वजह से मुझे आज पैदल जाना पड़ रहा है.
खैर,
जैसे तैसे घर पहुंचा फिर खाया पिया और सो गया. ये भी एक जन्मदिन था, ना रात के 12 बजने
का इंतज़ार था ना ही बर्थडे वीश करने की टेंशन.
2 ओक्टुबर की सुबह थोड़ी देर से
हुई ऑफिस जो नहीं जाना था और यही वजह थी कि मन अपने आप हैप्पी बर्थडे गाँधी जी की
जगह पर थैंक्यू गाँधी जी बोल रहा था, इतना
ही नहीं एक खास बात तो ये भी थी कि उस दिन के पेट्रोल खर्चे में जाने वाले गाँधी
छाप नोट की बचत भी हो रही थी. भला इससे बढकर गान्धित्व को बचाने की बात और क्या हो
सकती थी. फिर क्या पुरे दिन टीवी में गाँधी जी के आदर्शों के ऊपर कार्यक्रमों की झांकियां
देखता रहा फिर शाम को सोचा की कही घूम आते हैं.
और
बिना हेलमेट के ही बाइक पर निकल लिया सोचा आज पुलिस वाले तो मिलेंगे नहीं 2 ओक्टुबर जो है आज तो वहाँ भी छुट्टी वाला माहौल होगा. घर से
कुछ दूर निकला ही था कि पुलिस का चलता फिरता चेक पोस्ट देखकर मेरे होश उड़ गए, तीन पुलिस वालों ने उम्मीद भरी निगाहों से मुझे रोक लिया.
मुझे फिर से याद आया कि आज तो घबराने की बात नहीं है आज इनको पक्का सत्य, अहिंसा और भ्रष्टाचार वाला पाठ याद होगा आखिर 2 ओक्टुबर जो है. लेकिन मुझे भी अपनी गलती का एहसास हुआ क्यूँ
कि मैंने भी तो ट्रेफिक नियम तोडा था ना हेलमेट ना ही बाइक के पेपर्स, अरे ये कोई गाँधी जी के नमक कानून तोड़ने जैसे थोड़ी था जो
सबका सपोर्ट मिलता. तब तक पुलिस वालों के दो विकल्प आ चुके थे या तो 1000 रुपये का चालान भरो या 500 रूपये. मुझे दोनों नोटों पर छपे गाँधी जी के साक्षात् दर्शन
होने लगे और साथ ही ये भी एहसास हुआ कि इस पर छपे गाँधी जी का वजन कितना भारी है.
फिर क्या था आखिर बार्गेनिंग भी तो कोई चीज होती है बात 300 रुपये पर आ बनी. मेरे पास 500 का एक ही नोट था सो पकड़ा दिया. पुलिस वाले ने नोट को लोंगो
से छुपाते हुए रौशनी की तरफ करके उसमे नकली और असली गाँधी जी की पहचान करने लगा, आखिर 200 लौटाने
जो थे वरना नकली गाँधी जी की वजह से उसका 2 ओक्टुबर
खराब हो जाता. मै अभी तक उम्मीद लगाये बैठा था कि शायद अब इसको गाँधी जी का पाठ
याद आ जायेगा कि रिश्वत नहीं लेना चाहिए. मैंने जाते जाते तीनों पुलिस वालों पर एक
नज़र डाली तीनों गाँधी जी के बंदरों की तरह लग रहे थे लेकिन इनकी बात कुछ और थी – एक गलत कर रहा था, दूसरा
गलत देख रहा था और तीसरा गलत सुन रहा था. घर लौटते समय गाँधी जी के हैपी बर्थडे
में से मेरे लिए हैपी शब्द गायब हो गया था लेकिन कई उन्सुल्झे सवाल अभी तक मुझे
परेशांन कर रहे थे. कि गलत कौन था मै या पुलिस वाले, क्या गाँधी जी के जन्मदिन पर भी मैंने सच में उन्हें कही याद
किया, और पोकेट में तो कितने सारे
गाँधी जी हैं लेकिन कही दिल में भी हैं क्या ?
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