कभी आपने शहीदों की शहादत के बाद उनके घर पर हो रही मिडिया कवरेज को गौर से देखा है ? क्या आपने नोटिस किया कि घर के कोने में खड़ी चारपाई कितनी पुरानी हो चुकी है, क्या आपने ये जानने की कोशिश की जो शख्स देश की खातिर मिट्टी में विलीन होने जा रहा है, उसके घर की दीवार ना जाने कबसे पेंट नहीं हुई है क्योंकि की कई जवानों के घर तो मिटटी के ही दिखते हैं, हाँ, उन दीवारों पर किये गए वादे जरुर दिख जाते हैं जो उस जवान ने किया था कि कुछ और साल में ये दीवारें मिटटी से ईंट की हो जाएँगी |
कभी ध्यान दिया है उन रोते बिलखते बच्चों पर जो उन सपनों को बताते हुए रो रहे होते हैं, जो उनके पापा ने अगली छुट्टी में आकर पूरा करने का वादा कर के चले गये थे, गौर से देखिएगा उन बच्चों के कपड़ों को, वो किसी शॉपिंग माल से ख़रीदे नहीं लगते हैं, ना ही किसी बड़ी मॉडर्न फैशन की दूकान से, ये उन्ही दुकानों के लगते हैं जहाँ पर इस बात पर उधार मिल जाता है कि 'बेटा छुट्टी पर आएगा तो पैसे चुका देंगे' ।
कभी कैमरे के उस नज़र पर भी गौर कीजियेगा जो वो देखना और दिखाना नहीं चाहता है, जरा उस विधवा के तरफ ध्यान दीजिये, जिसको इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसे नेशनल टीवी पर दिखाया जा रहा है, उसका पल्लू अपने दौर के सबसे निचले स्थान पर गिरा हुआ है, वो रिपोर्टर, जो उससे अजीब से लेकिन बड़ा रटा राटाया सवाल पूछ रहा है, उसे ठीक से रोने भी नहीं दे रहा ।
उसे क्या फर्क पड़ता है “क्या आपको लगता है कि अब पाकिस्तान पर अटैक करके उसे बर्बाद कर देना चाहिए” सवाल पर उसके जवाब का कितना असर होगा, वो तो इस बात पर घबरा रही है कि, वो पडोसी जो उसकी मुट्ठी भर जमीन को सालों से हथियाने की कोशिश कर रहा है अब उससे उसे कौन बचाएगा, कौन बचाएगा उसे उन नज़रों से जो महज कुछ चंद दिनों बाद आंसुओं के सूखते ही उसे घूरना शुरू कर देंगी । उसके पति ने देश बचाने के लिए अपने जान की कुर्बानी दे दी और अब उसे अपने नन्ही सी बच्ची समेत खुद को बचाने के लिए अपनी जिंदगी की क़ुरबानी जाती हुई दिख रही है ।
कैमरा उन खामोश नज़रो के पीछे भी कुछ कहना चाह रहा है जो अभी कुछ वक्त पहले चमकते चहकते हुए अपने आपको एक सेना के जवान का पिता बता रहीं थी, इन आँखों को तो ठीक से रोना भी नहीं आता और ना ही अब इन में इतनी हिम्मत बची है कि बाकि रोती हुई आँखों को चुप भी करा सकें, लोग उसे बार बार ये कहकर और दुःखी कर रहे हैंकि अब आप ही हैं जो इस परिवार को हिम्मत दे सकता है, आपको रोते हुए लोग देखेंगे तो सभी कमजोर पड़ जाएंगे, लेकिन वो चाहता हैकि वो भी बिखर के रो ले, कोई तो कंधा हो जो बिना कुछ कहे सुने बस रोने दे उसे, वो रिपोर्टर यहाँ भी कुछ वही सवाल पूछ रहा है कि शायद कुछ तड़कता भड़कता जवाब आ जाए, और ये सनसनी खबरों के जमाने की पैदाइश वाला रिपोर्टर कुछ ऐसा दे सके जिसको उसके आका लोग एक्ससीलुसिव का नाम देकर दिन भर चला सकें, लेकिन बूढी आँखें तो कतई खामोश हैं, ठीक से हिंदी भी ना बोल पाने वाली जबान अपने दर्द को समेटने में असमर्थ हैं, लेकिन बोले तो बोले कैसे, कैमरे और माइक के सामने बोलने और भावुक होने का न ही कोई अनुभव है और ना ही आदत, ये काम तो नेताओं के बस का ही है ।
इसी बीच नेता जी की घोषणा भी हो जाती है कि पुरे 10 लाख शहीद के परिवार को मिलेंगे, ब्रेकिंग न्यूज़ में नेता जी के इस बयान को शहीद के परिवार से ज्यादा कवरेज मिलती है, और शहीद का बूढ़ा बाप इस बात से घबरा रहा है कि बुढ़ापे में इन 10 लाख को पाने के लिए कितने चक्कर लगाने पड़ेंगे ।
खैर, कैमरे बहुत कुछ बोलते हैं लेकिन आगे से जब भी किसी शहीद के घर की कवरेज हो तो उसके आगे भी वो देखने की कोशिश कीजियेगा जो रिपोर्टर छोड़ देता है या जिसको कवर करने की आजादी नहीं होती उसे ।
नेताओं का क्या है वो तो ट्विटर पर अच्छी संवेदनायें व्यक्त करने के लिए एक्सपर्ट्स रखें हैं, खैर जिनके घर, खानदान से कोई आर्मी में न हो ना शहीद हुआ हो वो इसका मतलब 15 अगस्त और 26 जनवरी को बोले गए भाषण में लिखी कुछ लाइनों के इतर नहीं समझ पाते हैं, छोड़िये कुछ लोग बस इसीलिए पैदा होते हैं कि हर चीजों को अपने मतलब के हिसाब से समझ सकें
जय हिंद।
प्रवीण कुमार राजभर
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