इस साल का "हैप्पी टीचर्स डे" सीधे AIIMs से!
आज उसने पहली बार सफेद वाला कोट पहना है, जो मरीजों के नज़रों में उसके डॉ का बनने का पहला सर्टिफिकेट है । वो बहुत खुश है, बिल्कुल वैसे ही जैसे वो सामने पड़ा हुआ मरीज है । क्योंकि आज वो अरसे बाद खड़ा हो पाया है, आज ही उसके प्लास्टिक वाले पैर मिलें हैं उसको, अपने एक्सीडेंट के बाद जब उसने अपने पैर खो दिए थे, तबसे घर के टूटे फूटे फर्श पर घिसटने से लेकर हॉस्पिटल के स्ट्रेचर, व्हील चेयर, लिफ्ट तक बहुत बड़ा सफर तय किया है उसने ।
वो मरीजों वे कम बात करता है, हरे कलर का ऑपेरशन वाला ड्रेस पहन के शायद उसने अपने अंदर एक बहुत पड़ा पतझड़ भी छुपा रखा है, नाक के ऊपर उसने हवा को फिल्टर करने वाला मास्क पहन रखा है, शायद उससे अब कई बार इमोशन्स भी छनकर बाहर ही रह जाते हैं, उसका उस बूढ़े अंकल से तू तड़ाक करके बात करना और डांटना बताता है कि वो पुराना डॉ है यहां का ।
उसने अपने बगल में अपने जैसे ही एक हर रंग वाले को अभी जोर से घूरा है, शायद कहना चाह रहा हो कि तेरे होने के बाद भी मैं इससे बात क्यूँ करनी पड़ रही है, वो डॉ भाग कर आता है बूढ़े को दादा जी बोल रहा है, समझाने की कोशिश कर रहा है उनकी भाषा में, शायद उसे अपने दादाजी याद आ गए हों, जिन्होंने अपने जीते जी अपनी वसीयत अपने बेटे के नाम तो नही की लेकिन नाती के मेडिकल की पढ़ाई के लिए अपनी जमीन का एक बड़ा हिस्सा बिना सोचे बेच दिया था। इसका बात करना बताता है कि ये नया डॉ है ।
उसने अपने बगल में अपने जैसे ही एक हर रंग वाले को अभी जोर से घूरा है, शायद कहना चाह रहा हो कि तेरे होने के बाद भी मैं इससे बात क्यूँ करनी पड़ रही है, वो डॉ भाग कर आता है बूढ़े को दादा जी बोल रहा है, समझाने की कोशिश कर रहा है उनकी भाषा में, शायद उसे अपने दादाजी याद आ गए हों, जिन्होंने अपने जीते जी अपनी वसीयत अपने बेटे के नाम तो नही की लेकिन नाती के मेडिकल की पढ़ाई के लिए अपनी जमीन का एक बड़ा हिस्सा बिना सोचे बेच दिया था। इसका बात करना बताता है कि ये नया डॉ है ।
वार्ड के बाहर बैठा सिक्युरिटी गार्ड हर पर्चे को बड़ी गौर से देखता है जैसे डॉ की हर लिखावट को समझता है खुद, वो शायद पुराना है यहां, समझ जाता है की मरीज को किस रूम में भेजना है, लेकिन पर्चा जरूर देखता है ।
दूसरा गार्ड अब पर्चा नही देखता है, लेकिन वो डांटना सिख गया है, अब वो सिटी बजाके इशारे से गैलरी खाली कराता है, वो बोलता है यहां नही बैठना चाहे जहाँ बैठ जाओ, मरीज और उनके साथ वाले उठ के बैठ जाते हैं लाचारी के साथ, फिर लेट जाते हैं इस डर से की ये जगह छोड़ी तो ये भी हाथ से निकल जायेगी, लेकिन तभी फिर से सिटी बज जाती है।
दूसरा गार्ड अब पर्चा नही देखता है, लेकिन वो डांटना सिख गया है, अब वो सिटी बजाके इशारे से गैलरी खाली कराता है, वो बोलता है यहां नही बैठना चाहे जहाँ बैठ जाओ, मरीज और उनके साथ वाले उठ के बैठ जाते हैं लाचारी के साथ, फिर लेट जाते हैं इस डर से की ये जगह छोड़ी तो ये भी हाथ से निकल जायेगी, लेकिन तभी फिर से सिटी बज जाती है।
वो मरीज अपनी जिंदगी को कोस रहा है, वो थक गया है अब लाइन में खड़े होकर इलाज करवाने से, भटकने से, पैसे नहीं हैं तो प्राइवेट हॉस्पिटल भी नहीं जा सकता, लेकिन वो भी क्या दिन थे जब चुनाव के वक्त महीनों पहले ही हाथ मे झंडे के साथ घर घर जाकर चुनावी तैयारी कराता था, सरकार चुनवा ली उसने, लेकिन उसके सरकार ने अपने वादे नही चुने।
वो टेबल पर बैठी आंटी भी थक गई हैं, उम्र के इस पड़ाव में भी लोग उन्हें सिस्टर ही कहते हैं, अब वो कम मुस्कराती हैं, मरीज उनसे डरते हैं ,क्योंकि वो बात बात पर डांट देती हैं, आजकल वो बस छठें पे-कमीशन वाले चर्चे पर ही खुश होती हैं ।
उस नई सिस्टर के आते ही मरीज खुश हो जाते हैं, उसकी उम्र बताती है कि वो पूरे वार्ड में भर्ती मरीजों के लिए किसी की सिस्टर, तो किसी के बेटी के जैसी है, मरीज नही जानते कि वो क्या इंजेक्शन लगाती है लेकिन जब वो लगाती है तो दर्द बहुत कम होता है, शायद वो हमेशा मुस्कराती है उसी का असर है । सच में कुछ ऐसे डॉ भी मिलेंगे आपको जो सच में भगवान टाइप फीलिंग देते हैं।
उस नई सिस्टर के आते ही मरीज खुश हो जाते हैं, उसकी उम्र बताती है कि वो पूरे वार्ड में भर्ती मरीजों के लिए किसी की सिस्टर, तो किसी के बेटी के जैसी है, मरीज नही जानते कि वो क्या इंजेक्शन लगाती है लेकिन जब वो लगाती है तो दर्द बहुत कम होता है, शायद वो हमेशा मुस्कराती है उसी का असर है । सच में कुछ ऐसे डॉ भी मिलेंगे आपको जो सच में भगवान टाइप फीलिंग देते हैं।
वो शख्स पहले तो ये समझ रहा था कि एक दो दिन में सब ठीक हो जाएगा, पिछले कई महीनों से अब वो हर हफ्ते चक्कर लगाता है, पॉकेट में रखी एक स्लिप अब बड़ी फाइल में तब्दील हो चुकी है, अभी पिछले हफ्ते उसने 50 रुपये का एक फोल्डर खरीदा इन्ही हॉस्पिटल के पेपरों को सुरक्षित रखने के लिए जिन पेपरों के पीछे उसने अब तक की अपनी सारी कमाई लगा दी । उसके पर्स में अब एटीएम की वो ही स्लिप बची है, जिसमें बचे पैसे को एटीएम ने इनसफिसिएंट मनी बोलकर देने से मना कर दिया है, ये मरीज के साथ वाले होते हैं जिन्हें डॉ की हिदायत होती है कि आपको मरीज के सामने हमेशा मुस्कराते रहना है ।
ये दुनिया महज मुसीबतों और परीस्थितियों से सीखती है । लोग इसी के हिसाब से आपके साथ जुड़ते हैं, और जुड़े रहते हैं ।
मुसीबतें या बीमारियां लंबी हो जाएं तो बहुत से रिस्ते देर तक नही टिकते, वहीं अगर परिस्थितियां बेहतर हो तो रिस्ते अपने आप एडजस्टिंग मोड में आ जाते हैं।
इस दुनिया में लोग अच्छे, बहुत अच्छे, कम अच्छे और ना-अच्छे, इन्ही सबके आधार पर होते हैं चाहे वो हॉस्पिटल हो या इसके बाहर की जिंदगी ।
तो इन्ही हालातों को
"हैप्पी टीचर्स डे"।
मुस्कराइए की आप हॉस्पिटल में हैं ।
ये दुनिया महज मुसीबतों और परीस्थितियों से सीखती है । लोग इसी के हिसाब से आपके साथ जुड़ते हैं, और जुड़े रहते हैं ।
मुसीबतें या बीमारियां लंबी हो जाएं तो बहुत से रिस्ते देर तक नही टिकते, वहीं अगर परिस्थितियां बेहतर हो तो रिस्ते अपने आप एडजस्टिंग मोड में आ जाते हैं।
इस दुनिया में लोग अच्छे, बहुत अच्छे, कम अच्छे और ना-अच्छे, इन्ही सबके आधार पर होते हैं चाहे वो हॉस्पिटल हो या इसके बाहर की जिंदगी ।
तो इन्ही हालातों को
"हैप्पी टीचर्स डे"।
मुस्कराइए की आप हॉस्पिटल में हैं ।