उस दिन वैक्सीन लगवाने के बीच में ही मेरे कैब वाले को कहीं अचानक जाना पड़ा और लौटते हुए मुझे कोई कैब नहीं मिल रही थी.
कुछ बुक हुई भी तो ड्राइवर्स ने लोकेशन पूछ कर कैंसिल कर दिया क्युकी दिल्ली से वैशाली यानि यूपी में आना था.
मै थोडा परेशान हुआ, कुछ समझ में नहीं आ रहा था की जाने का क्या करें अब,
एक ऑटो आ रहा था, मन में सोचा, इससे बात करूँ, कम से कम बॉर्डर तक तो छोड़ ही देगा, हालाँकि उसके जाने की उम्मीद न के बराबर थी, फिर भी मेरे पास कोई आप्शन नहीं था तो मैंने, उसे हाथ दिया.
भैया आनंद विहार तक छोड़ दोगे?
हाँ, छोड़ देंगे!
कितना लोगे, (मेरे मन में था की जो भी बोलेगा चल दूंगा क्यूंकि मज़बूरी थी और ये बात उसे भी पता थी, तो मै किसी भी रेट के लिए तैयार था)
भैया मीटर से चलेंगे, जो बनेगा दे देना!
मेरे लिए ये किसी झटके से कम नहीं था, क्यूंकि दिल्ली में ऑटो वाले नार्मल दिनों में भी मीटर से चलने में कतराते हैं, और आज तो मज़बूरी थी मेरी.
मेरे लिए पहले पहला झटका तो ये था की ये चलने को तैयार हुआ, दूसरा वो भी मीटर से, मै बैठा, मन ही मन बड़ा खुश हो रहा था
मुझसे रहा नहीं गया, मैंने कुछ देर में पूछ ही लिया, भैया, एक बात बताओ ये मीटर से जाने वाली बात हजम नहीं हुई, आप लोग तो इतनी आनाकानी करते हैं मीटर से जाने में और आज जब सवारी नहीं है इतनी तो आपने मीटर से हाँ बोल दिया.
सर सही कहा आपने, लेकिन इस कोरोना में हर कोई अपने दुखों से परेशान है, अब ऊपर से उसे क्या चार्ज करना, मै इन दिनों कुछ भी एक्स्ट्रा नहीं लेता हूँ, जो मिल जाता, जिधर की सवारी मिलती है, ले जाता हूँ सोचता हूँ की लोग मुश्किल में ही घर से बाहर निकल रहे हैं, उन्हें और क्या मुश्किल में डालना.
मन में उसके लिए इज्जत बढती जा रही थी, आज जब, बड़े बड़े लोगों, नेताओं को ओक्सीजन, इंजेक्शन, दवाइयों की कालाबाजारी और लोगों की मज़बूरी का फायदा उठाते हुए देखता हूँ तो लगता है कि ये ऑटो वाला उनसे लाख दर्जा बेहतर है.
सच में बहुत से लोग हैं जो बहुत बेहतर कर रहे हैं इस महामारी में और दुनिया इन्ही लोगों से खूबसूरत बनी हुई है.