Friday, 23 June 2017



40 रुपये में हॉस्पिटल का सबसे सस्ता और सबसे उपयोगी बिछौना है साहब, ले लो इसकी जरूरत जरूर पड़ेगी, आप एम्स में आये हो ।
हॉस्पिटल के बाहर एक प्लास्टिक बेचने वाले की सेल्स पिच थी ये,कही भी कभी भी बिछा कर बैठने वाली बेडशीट टाइप। ये सच में बड़ी काम की होती है । 
किसी बीमारी का दंश झेल रहे मरीज के साथ साथ पूरा परिवार बीमार हो जाता है, क्योंकि अमूमन एम्स में आने वाले लोग वही होते हैं जो या तो हर जगह से उम्मीद छोड़ चुके होते हैं या बीमारी ही ऐसी होती है जिसमें बचने की उम्मीद कम होती है। हाँ इसके इतर एक दो गाड़ियां रेड बत्तियों वाली या सरकारी टाइप भी दिख जातीं हैं, जिनकी बीमारी को भी ऐसा VIP ट्रीटमेंट मिलता हैकि ये बीमारियां भी अपने ऊपर रश्क करती होंगी ।
एम्स, भारत की सबसे बेहतरीन मेडिकल सुविधाओं वाला हॉस्पिटल है, ना जाने कितने गरीब परिवार यहां मिल रही फ्री दवाओं के बदले बस दुवाएं ही दे सकने के काबिल होते हैं ।
हॉस्पिटल की भी एक अलग दुनिया होती है न, और एम्स तो अपने आप मे एक अलग ग्रह है इस मामले में,
भीड़ इतनी की अगर आपको फर्श पर बैठने की जगह भी मिल जाये तो समझीये आप लकी हैं, फिनायल की खुशबू वाले फर्श, पुराने स्ट्रेचर के बेयरिंग से आ रही चु चू की आवाज़ के साथ उसपर पर लदी थकी हुई जिंदगियां, लाइनों में घंटों से लगे हुए थकान वाले चेहरे, महज एक मीटर में सिकुड़ कर सोया हुआ सफेट प्लास्टर में आधा लिपटा हुआ वो शख्श, लाइन में लगी दवाई की पर्ची एक हाथ लिए हुए और दूसरे हाथ मे किराये के पैसे दबोचे हुए वो बूढ़ी और कमजोर हड्डियां जो इस डर में हैकि कहीं अंदर से ये आवाज ना आ जाये कि अम्मा ये वाली दवाई तो खत्म हो गई है अब आपको बाहर से लानी पड़ेगी ।
दो टॉयलेट में एक टॉयलेट पर ताला लगने के बाद एक ही लाइन में खड़े हुए औरत और आदमी । वहीं चेहरे पर मुस्कान लिये ठीक होकर लौटता हुआ मरीज से तब्दील होकर जीता जागता इंसान।
हॉस्पिटल के बाहर 2 रुपये की चीज को 15 में बेचने वाले डकैत, और इन सबके बीच में उलझा हुआ वो हर इंसान जो बीमार ले साथ आया हुआ होता है, और जिसे डॉक्टर के कहे मुताबिक मरीज के सामने हमेशा मुस्कराते रहने की एक्टिंग करनी होती है ।
इनकी शक्लें बताती हैं कि ये कोई और नही इनमे से ज्यादातर किसान ही हैं जो सूइसाइड करने से बच गए तो अब बीमारी मार देगी इन्हें ।
और दूसरे तरफ मास्क से आधे ढके हुए चेहरे जो सासों को फिल्टर करके अपने फेफड़े की फिक्र करते दिख जाएंगे, अमूमन ये लोग हॉस्पिटल स्टाफ होते हैं ।
यहीं सफेद जैकेट पहने हुए, शांतिदूत टाइप डॉक्टर्स हमारी आखिरी उम्मीद होते हैं, हरे पर्दे में ढका हुआ इनका केबिन, आखों को सुकून तो देता है लेकिन धड़कने बढ़ी होती हैं कि ना जाने कौन सी न्यूज़ ब्रेक हो जाये, डॉ जब रिपोर्ट्स देखतें हैं तो मरीज की नज़र उनके माथे पर पड़ी हुई सिलवटों पर होती है, वो गिनता रहता है कि कितनी बढ़ रही हैं और कितनी कम, डॉ की आँखें जितनी छोटी होती जाती हैं उनमें मरीज को गहराई और दिखने लगती है । वैसे रिपोर्ट्स का भी कमाल का कनेक्शन होता है, इधर डॉ ने लिखा और उधर मरीज एक डिलीवरी बॉय के तरह भागना शुरू कर देता है , और तब तक नही थकता जब तक लैब से रिपोर्ट्स लेकर डॉ तक न पहुचा दे और जान ले उसके बारे में ।
एम्स में इलाज निःसंदेह बेहतर होता है, डॉ बहुत अच्छे होते हैं, ये मेरा अपना अनुभव है । लेकिन इस तरह के संस्थान और होने चाहिए देश में, जिससे कि भीड़ कम हो, लोगों को जरूरी इलाज समय पर मिल सके ।
खैर आखिर में, मुस्कराइए की जिंदगी यही है ।

0 comments:

Post a Comment

Followers

The Trainers Camp

www.skillingyou.com

Join Us on Facebook

Popular Posts