Sunday, 24 February 2019


मेरा मानना हैकि रिस्ते बनाना, जोड़े रहना, उन्हें एहसास करना, जीना और एक क़ाबिल मुकाम पर ले आने की कोशिश करना किसी सोशल मीडिया के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्निक, या चैटबोट से शुरू तो की जा सकती है लेकिन उसे जीने के लिए हमेशा हमें रिस्तों के बेसिक्स में जाना पड़ेगा, और हमारी जिंदगी में रिस्तों की पहली किश्त माँ के साये में मिली और माँ के प्यार को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के दायरे में लाना तो क्या, सोचना भी एक गुनाह होगा, और यहीं से मेरा मानना हैकि रिस्तों को जितना आर्टिफिशियल रखा जाएगा और उसे बनाने और निभाने के लिए इंटेलिजेंस का इस्तेमाल किया जाएगा ये उतना ही कॉस्मेटिक होगा, लिहाज़ा उसकी बुनियाद उतनी ही हल्की और कमजोर होगी । 
हाँ ये चमकदार तो जरूर लगेंगे, बेहद अट्रेक्टिव भी होंगे, ओरिजिनल फील भी दे सकते हैं लेकिन दुनिया के सबसे क़ीमती कॉस्मेटिक के साथ भी सबसे बड़ी विडंबना ये हैकि उसे उतारकर या धोकर सोना ही पड़ता है ।
शायद, इसीलिए कहा जाता हैकि सिम्पलीसिटी कभी आउट ऑफ फैशन नही होती।
लिंक्डइन प्रोफेसनल्स की दुनिया मानी जाती है, लोग यहाँ अपने काम के बारे में चर्चा करते हुए पाए जाते हैं, लोग मकसदों के बीच अपने मकसद का प्रोफेशनल खोज रहे होते हैं ।मैंने लिंक्डइन को बदलते हुए देखा है, या यूँ कहें कि अपग्रेड होते हुए । हम सब यहाँ किसी न किसी मक़सद से होते हैं, किसी को बिजनेस, जॉब, फेम, ब्रांडिंग तो किसी को बस तारीफ़ चाहिए होती है, मक़सद होना कोई बुरी बात नही है, लेकिन हममे से बहुत लोग दुनिया को इसबात के लिए भी दिनभर कोसते पाए जाते हैंकि दुनिया मतलबी हो चुकी है लोग किसी के काम नही आते हैं, ख़ैर इसके बाद भी बेहतर लोग हर जगह हैं और रहेंगे, मक़सद बनेंगे और पूरे होते भी रहेंगे ।
ख़ैर ये भी देखने में लगता हैकि हम अपने आपको कॉमन नहीं समझना चाहते और जितना अन-कॉमन समझते जा रहे हैं हमारा कॉमन सेंस भी उतना ही अन-कॉमन होता जा रहा है ।
मामला रिस्तों का चल रहा था, मैंने देखा है लिंक्डइन पर या किसी भी नेटवर्किंग साइट्स पर सब कुछ आसान है, पहले जन्मदिन, सालगिरह, ख़ास मौकों का रिमाइंडर आता था बस, अब पहले से लिखे लिखाये ग्रीटिंग्स मेसेजेज भी आते हैं, हमें बस एक क्लिक करना होता है और बधाई संदेश अगले के इनबॉक्स में होते हैं ।
पूरे दिन साथ मे एनीवर्सरी मनाने वाले कपल अगर शाम को शोशल मीडिया पर एक दूसरे को विश ना करें तो पूरी सेलिब्रेशन खतरे में पड़ जाती है कई बार ।
रिस्तों को याद रखना और निभाना इतना आसान पहले कभी नहीं रहा, और पूरी क़ायनात ये बात जानती हैकि जो आसान या आम हो जाये वो अपना वजूद ख़तरे में कर देता है।
रिस्ते कोई कॉन्ट्रेक्ट नहीं हैं जिसे महज़ सिग्नेचर की दरकार होती हो, ये तो जाने कितना कुछ हैं, एहसास करने से लेकर एहसास कराने तक के सफऱ में हमें रिस्तों की परिभाषा को फिर से इनके बेसिक्स में जाकर खोजनी पड़ेगी, क्योंकि आर्टिफिसियल इंटेलिजेंस से हम ख़ास दिनों को याद करके ख़ास बधाई तो दे सकते हैं लेकिन खास भी बन पाएंगे इसपर एक बहुत बड़ा सवाल है, क्योंकि जिसका ख़ुद का नाम आर्टिफिशियल हो उसकी बुनियाद पर और क्या उम्मीद कर सकते हैं, कहते हैंकि एक चोर भी ईमानदार साथी चाहता है ।
और रिस्ते तो ईमानदारी, सहजता, और सरलता के बुनियाद पर ही जोड़ें जाए तो टिकाऊ हो सकते हैं।
शुक्रिया,
प्रवीण कुमार राजभर

Tuesday, 19 February 2019



कभी आपने शहीदों की शहादत के बाद उनके घर पर हो रही मिडिया कवरेज को गौर से देखा है ? क्या आपने नोटिस किया कि घर के कोने में खड़ी चारपाई कितनी पुरानी हो चुकी है, क्या आपने ये जानने की कोशिश की जो शख्स देश की खातिर मिट्टी में विलीन होने जा रहा है, उसके घर की दीवार ना जाने कबसे पेंट नहीं हुई है क्योंकि की कई जवानों के घर तो मिटटी के ही दिखते हैं, हाँ, उन दीवारों पर किये गए वादे जरुर दिख जाते हैं जो उस जवान ने किया था कि कुछ और साल में ये दीवारें मिटटी से ईंट की हो जाएँगी |
कभी ध्यान दिया है उन रोते बिलखते बच्चों पर जो उन सपनों को बताते हुए रो रहे होते हैं, जो उनके पापा ने अगली छुट्टी में आकर पूरा करने का वादा कर के चले गये थे, गौर से देखिएगा उन बच्चों के कपड़ों को, वो किसी शॉपिंग माल से ख़रीदे नहीं लगते हैं, ना ही किसी बड़ी मॉडर्न फैशन की दूकान से, ये उन्ही दुकानों के लगते हैं जहाँ पर इस बात पर उधार मिल जाता है कि 'बेटा छुट्टी पर आएगा तो पैसे चुका देंगे' ।
कभी कैमरे के उस नज़र पर भी गौर कीजियेगा जो वो देखना और दिखाना नहीं चाहता है, जरा उस विधवा के तरफ ध्यान दीजिये, जिसको इससे फर्क नहीं पड़ता कि उसे नेशनल टीवी पर दिखाया जा रहा है, उसका पल्लू अपने दौर के सबसे निचले स्थान पर गिरा हुआ है, वो रिपोर्टर, जो उससे अजीब से लेकिन बड़ा रटा राटाया सवाल पूछ रहा है, उसे ठीक से रोने भी नहीं दे रहा । 
उसे क्या फर्क पड़ता है “क्या आपको लगता है कि अब पाकिस्तान पर अटैक करके उसे बर्बाद कर देना चाहिए” सवाल पर उसके जवाब का कितना असर होगा, वो तो इस बात पर घबरा रही है कि, वो पडोसी जो उसकी मुट्ठी भर जमीन को सालों से हथियाने की कोशिश कर रहा है अब उससे उसे कौन बचाएगा, कौन बचाएगा उसे उन नज़रों से जो महज कुछ चंद दिनों बाद आंसुओं के सूखते ही उसे घूरना शुरू कर देंगी । उसके पति ने देश बचाने के लिए अपने जान की कुर्बानी दे दी और अब उसे अपने नन्ही सी बच्ची समेत खुद को बचाने के लिए अपनी जिंदगी की क़ुरबानी जाती हुई दिख रही है ।
कैमरा उन खामोश नज़रो के पीछे भी कुछ कहना चाह रहा है जो अभी कुछ वक्त पहले चमकते चहकते हुए अपने आपको एक सेना के जवान का पिता बता रहीं थी, इन आँखों को तो ठीक से रोना भी नहीं आता और ना ही अब इन में इतनी हिम्मत बची है कि बाकि रोती हुई आँखों को चुप भी करा सकें, लोग उसे बार बार ये कहकर और दुःखी कर रहे हैंकि अब आप ही हैं जो इस परिवार को हिम्मत दे सकता है, आपको रोते हुए लोग देखेंगे तो सभी कमजोर पड़ जाएंगे, लेकिन वो चाहता हैकि वो भी बिखर के रो ले, कोई तो कंधा हो जो बिना कुछ कहे सुने बस रोने दे उसे, वो रिपोर्टर यहाँ भी कुछ वही सवाल पूछ रहा है कि शायद कुछ तड़कता भड़कता जवाब आ जाए, और ये सनसनी खबरों के जमाने की पैदाइश वाला रिपोर्टर कुछ ऐसा दे सके जिसको उसके आका लोग एक्ससीलुसिव का नाम देकर दिन भर चला सकें, लेकिन बूढी आँखें तो कतई खामोश हैं, ठीक से हिंदी भी ना बोल पाने वाली जबान अपने दर्द को समेटने में असमर्थ हैं, लेकिन बोले तो बोले कैसे, कैमरे और माइक के सामने बोलने और भावुक होने का न ही कोई अनुभव है और ना ही आदत, ये काम तो नेताओं के बस का ही है ।
इसी बीच नेता जी की घोषणा भी हो जाती है कि पुरे 10 लाख शहीद के परिवार को मिलेंगे, ब्रेकिंग न्यूज़ में नेता जी के इस बयान को शहीद के परिवार से ज्यादा कवरेज मिलती है, और शहीद का बूढ़ा बाप इस बात से घबरा रहा है कि बुढ़ापे में इन 10 लाख को पाने के लिए कितने चक्कर लगाने पड़ेंगे ।
खैर, कैमरे बहुत कुछ बोलते हैं लेकिन आगे से जब भी किसी शहीद के घर की कवरेज हो तो उसके आगे भी वो देखने की कोशिश कीजियेगा जो रिपोर्टर छोड़ देता है या जिसको कवर करने की आजादी नहीं होती उसे ।
नेताओं का क्या है वो तो ट्विटर पर अच्छी संवेदनायें व्यक्त करने के लिए एक्सपर्ट्स रखें हैं, खैर जिनके घर, खानदान से कोई आर्मी में न हो ना शहीद हुआ हो वो इसका मतलब 15 अगस्त और 26 जनवरी को बोले गए भाषण में लिखी कुछ लाइनों के इतर नहीं समझ पाते हैं, छोड़िये कुछ लोग बस इसीलिए पैदा होते हैं कि हर चीजों को अपने मतलब के हिसाब से समझ सकें
जय हिंद।
प्रवीण कुमार राजभर

Friday, 8 February 2019


माँ कभी अकेले नही मरती!
मर जाता है आपका बचपन, मर जाती है आपके बचपन की वो सारी कहानियां जिसकी एक मात्र साक्षी बस माँ ही होती है, मर जातें है बचपन के वो सारे किस्से जो बस माँ के मुंह से ही अच्छे लगते हैं ।
मर जातीं है वो खुशियां, मुस्कुराहटें जो उस कहानी में माँ और बेटे, दोनो के चेहरे पर हर बार एक साथ आते थे, मर जाते हैं वो एहसास जब उनका हाथ सर से होते हुए चेहरे पर आता था, जिसके छुवन को शब्दों में समेटने कोशिश करना भी गुस्ताखी होगी ।
मर जाती है वो तोतली आवाज़ जिसे बच्चा बड़ा होने के बाद भूल जाता है, पर माँ हमेशा याद रखती थी ।
मर जाते हैं वो सारे स्वाद जो बस माँ के हाथों से निकलते थे, जो दुनिया के किसी भी दूसरे किचेन में नही मिल सकते ।
मर जाते वो सारे अनकहे दर्द, दास्तां जो छुपा लिए थे उन्होंने, महज़ इसीलिए की दुःखो को अपने आप तक समेटने का हुनर बस माँ में ही होता है।
मर जाती है वो मुहब्बत जो *लाडला* शब्द में मिलती है।
मर जाते हैं वो सारे गुहार, मन्नतें, दुवाएं जो हर त्यौहारों में, गली मोहल्ले और आस पास के मंदिरों में बैठे हर देवी देवताओं से माँ अपने बच्चों के लिए लगाया करती है ।
मर जाती है वो तकरार जो पिता जी से अक्सर हो जाती थी, जो बच्चे के हर नादानियों, गलतियों पर पर्दा डालने के लिए माँ लेकर आ जाती थी ।
मर जाती वो पसंद नापंसन्द की लंबी चौड़ी लिस्ट, जो बस माँ को पता होती है, जिसके बारे में खुद बच्चा भी अनजान रहता है ।
मर जाती है वो हर अदालत जिसमें हर केस की सुनवाई चाहे जितनी लंबी चले, चाहे जितनी खिलाफत वाली दलीलें दी जाए लेकिन माँ का अंतिम फैलसे में बच्चा जीत ही जाता है ।
मर जाती है वो सच्चाई और ईमानदारी की सबसे मजबूत दलील जो बचपन से लेकर अब तक "माँ कसम" बोलने से आती है ।
मर जाती हैं वो आँखें जिसके अपने हर सपने में बच्चे को केवल बड़ा, और बेहतर देखने की ही इजाज़त होती है ।
मर जाती है वो सुबह, जिसमें कई बार जागने के बाद भी बच्चा माँ के जगाने का इंतज़ार करता है, और माँ के बोलने पर ही जागता है ।
बंद हो जाते हैं वो सारे खाते, जिसमें कुछ बिना डिपॉजिट किये भी हमेशा लाड़, प्यार और आशीर्वाद जितना और जितनी बार विड्रॉल कर लो वो खत्म होने का नाम नही लेते ।

हाँ, माँ कभी अकेले नही मरती ।

Followers

The Trainers Camp

www.skillingyou.com

Join Us on Facebook

Popular Posts