उन दिनों खरीदे हुए झंडे नही चलते थे, स्कूल के दिनों में 15 अगस्त के दिन का इंतज़ार बेचैन कर देता था, वजहें बहुत सारी होती थीं।
15 अगस्त की तैयारी कई दिन पहले शुरू हो जाती थी, कला की कॉपी का प्लेन कागज और तिरंगे वाले कलर्स। कलर बॉक्स भी अलग ही थे, बटन जैसे कलर और कूची, पानी लो, कूची कलर पर रगड़ो और तिरंगा बनाना शुरू।
उसके बाद उसे तस्सली से सुखाओ, बांस की लड़की (कैन) को बीच से फाड़ो, उसमें तिरंगा फंसाओ, और रस्सी से बांध दो।
15 अगस्त की सुबह पैर नही रुकते थे, तस्सली से धुले हुए, प्रेस किये स्कूली ड्रेस पहन कर भागते हुए स्कूल जाते थे।
उसके बाद सिलसिला शुरू होता था, टोली बनने का, जो प्रभात फेरी करेगी। टोली के आगे राष्ट्र गान गाने वाले कुछ बच्चे और उसे दोहराने वाली पूरी टोली, बीच में देश भक्ति के नारों का जयघोष।
गांव गांव टोलियां निकलने लगती, जिस दरवाजे रुकते वहाँ नारे लगाए जाते, घर का मालिक कुछ पैसे देता और टोली आगे बढ़ जाती, कहीं कहीं बच्चों को पानी पिलाने के लिए गुड़ और लाई भी मिलती थी।
मुझे लगता है कि उन दिनों हम लोग 15-20 किलोमीटर तो आराम से घूम लेते थे।
पंक्ति में चलो, कोई पंक्ति नही तोड़ेगा, सबको जयघोष लगाना है, जोर से लगाओ, बोलो भारत माता की जय, ये सब टीचर्स और क्लास मॉनिटर बताते रहते थे बीच बीच में, लेकिन अपने को बस इंतज़ार इस बात का होता था कि ये प्रभात फेरी को लौटने के लिए कब कहा जायेगा, फिर जैसे ही लौटने वाली सिटी बजती, क़सम से दुगुनी एनर्जी आ जाती थी, क्योंकि अब हम लड्डू के बहुत करीब होते थे।
भागते हुए स्कूल पहुचते थे और बस कुछ ही देर बाद ताज़े ताज़े बने लड्डू की खुशबू और हमारे मुह में पानी दुनिया, की दो खूबसूरत चीज होती थी उन दिनों।
लाइन में लगने का आदेश और फिर सबसे आगे रहने की होड़, और एक एक करके लड्डू मिलना शुरू होता था तो क़सम से लगता था कि जैसे जिदंगी की सबसे खूबसूरत मिठाई है ये।
आज़ादी के लड्डू, जय घोष के लड्डू, प्रभात फेरी के लड्डू, वो बेहद खास लड्डू होते थे।
आज उस लड्डू की कीमत लगाना मुश्किल है।
आज 15 अगस्त पर उसी मिठास के साथ आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की ढेरों
बधाई
, और हमारे वीरों को शत शत नमन।अगर आपने भी ऐसे लड्डू खाएं हैं तो कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
#HappyIndependenceDay #AzadiKaAmritMahotsav
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