आज वो ट्रेनिंग में फिर से
लेट आया था, और वही बहाने जो आये दिन हम किया करते हैं, एकबार फिर से मेरे कानो को सुनने को मिल रहे थे, कि “सर आज ट्रेफिक सच में बहुत
ज्यादा था और तो और तो आज बस भी खराब हो गई थी”. एक बार को तो मेरा मन हुआ कि ये पूछ ही डालूं के
ट्रेफिक जाम और बहुत ज्यादा ट्रेफिक जाम में क्या डिफरेंस होता है जबकि इंसान
दोनों से ही लेट हो जाता है चाहे कम लेट हो ज्यादा..लेट तो लेट होता है. फिर मुझे
याद आया कि कल इसने केवल ट्रेफिक जाम ही बोला था .. फिर आज ज्यादा शब्द लगाना तो
बनता है आखिर बातों में विविधता कैसे आती.
लेकिन आज के बहाने में मुझे
नया सुनने को मिला, वो ये था कि “सर वो क्या है न कि मुझे सुबह सुबह चाय पिने (बेड टी) की
आदत है जब तक मुझे चाय नहीं मिलती है मेरी नींद पूरी तरह खुलती ही नहीं है, और आज मेरे दोस्त को जल्दी ओफिस जाना था तो चाय नहीं मिली
और फिर मै समय से जाग नहीं पाया”. पता नहीं क्यूँ
मुझे ऐसा लगा कि उसके दोनों दिन लेट होने का बस ये ही एक कारण था. एकबार तो मुझे
समझ में ही नहीं आया कि अब इसको मै किस तरह का सुझाव दूं, ट्रेफिक के लिए तो ये बोल सकते थे कि घर से थोडा जल्दी
निकला करो, लेकिन अब मुश्किल ये थी कि जिसके दिन की
शुरुवात ही लेट है उसको जल्दी पहुचने की नसीहत मै कैसे दे सकता था.फिर पता नहीं क्यूँ ना चाहते हुए भी पूछ बैठा, कि तुम देल्ही में कबसे रह रहे हो, ‘सर 3 साल,’ उसने जवाब दिया.
और रहने वाले कहाँ के हो, उसने बिहार के एक छोटे से गांव का नाम लिया. मेरा अगला सवाल था कि “जब तुम घर पर रहते थे तो क्या चाय रोज बनती थी”. उसने कहाँ नहीं. मुझे काफी विश्वास था कि उसका यही उत्तर आने वाला है क्यूँ कि मै खुद उत्तर प्रदेश के छोटे से गाँव का रहने वाला हूँ और मुझे पता है कि आज से १० साल पहले मेरे घर पर भी चाय तभी बनती थी जब कोई मेहमान आता था.
अब उसके चेहरे से ये साफ
पता चल रहा था कि वो ये जान चूका है कि मै क्या पूछने वाला हूँ, और मेरा सवाल भी वही था कि
“जब तुम गाँव में रहते थे तब तुम्हारी नींद कैसे खुलती थी?
उसके जवाब आने से पहले ही
मेरे कुछ और प्रश्न आ गए थे कि “क्या होगा जब कभी तुम अकेले रहोगे , या क्या होगा अगर घर में आग
लग जाये क्या तब भी तुम्हे चाय कि जरुरत पड़ेगी”उसके पास कोई जवाब नहीं था, लेकिन शायद वो समझ चूका था कि ये सुबह सुबह चाय पीना और फिर जागना जो कुछ दिनों पहले तक महज आदत हुआ करती थी अब ये उसकी कमजोरी बन चुकी है.
ये कहानी हमारे हर किसी के
लाइफ में कही ना नहीं दिख जाती है, हम जाने अनजाने में ना जाने
कितने एसी आदतों को इतना स्ट्रोंग बना देते हैं कि वो आदते ना रह कर हमारी मजबूरियां
बन जाती है और हमारे आगे बढ़ने के रास्ते में दिवार बनकर खड़ी हो जाती है. उसे आज भी
याद है कि जब उसने देल्ही आने के लिए पहली बार ट्रेन के पायदान पर पैर रखा था तो
ना जाने कितने सपनो का भार उसके कंधो पर था और वो पायदान सिर्फ पायदान ना होकर
बल्कि उसे एक स्टेपिंग स्टोन की तरह लगा, लेकिन आज महज चाय पीने के एक आदत उसके लिए एक
स्टोपिंग स्टोन कि तरह हो गई थी जो उसको दो दिनों से ट्रेनिंग में लेट होने पर
मजबूर कर रही थी.
आज भागती जिंदगी में ना
जाने कितने सपने पाल कर हम हर रोज उसे पूरा करने के लिए निकलते है, और फिर कुछ ऐसी ही छोटी
छोटी आदते हमारे रास्ते के बीच में दिवार बन जाती है, हालाँकि इनको दिवार बनाने में में हमारा ही हाथ होता है, क्यूँ कि हम अपने आपको कुछ
इस तरह से भरोसा दिला देते हैं कि अब ये आदत तो मुझसे छूट ही नहीं सकती या इसको मै
छह कर भी बदल नहीं सकता. ये विश्वास दोनों तरफ सामान रूप काम करता है अब डिपेंड ये
करता है कि किस सेन्स में पोसिटिव या नेगटिव.. एक बड़ी पुरानी कहावत है “मानो तो देव नहीं तो पत्थर”. और हम सभी इस बात से पूरी
तरह ताल्लुक रखते हैं.
आइये अपनी हर आदतों को अपने
सक्सेस के रास्ते के लिए एक स्टेपिंग स्टोन बनाते हैं न कि स्टोपिंग स्टोन.
(यह आर्टिकल 28/11/2012 को दैनिक समाचार पत्र Inext(Dainik
Jagran) में प्रकाशित हो चूका है.
कृपया यहाँ क्लीक http://inextepaper.jagran.com/71183/Inext-Dehradun/28.11.12#page/11/1 करें )