Wednesday, 14 September 2016


एक शाम हिंदी दिवस के बाद की - यू नो " I mean So called Hindi Diwas

व्हाट हेपेंड डैड, यू आर लूकिंग वेरी टायर्ड ?
ओ यस हनी- टुडे आइ वाज इन अ हिंदी दिवस प्रोग्राम |
ओह माय गॉड – आप भी गए थे ? मै भी आज इसी में फंसी पड़ी थी डैड, यु नो स्कूल में भी आज हिंदी दिवस प्रोग्राम रखा हुआ था, यू विल बी सरप्राइज टू नो दैट की आधे बच्चे तो आये ही नहीं थे, कौन अपना दिन ख़राब करता भला इस तरह के बोर्रिंग प्रोग्राम में आकर |
खैर अब तो आप भी मेरी प्रोब्लम समझ ही गए होंगे ना, कि कैसा रहा होगा आज का दिन ?
यस बेबी – इट वाज रियली बोरिंग यु नो ?
पता नहीं क्यूँ लोग इसे मनाते हैं, खैर जब जनता के बीच में रहना है तो जाना ही पड़ेगा,
लेकिन तुम पहले ये बताओ कि तुम्हारा प्रोग्राम कैसा रहा ?
इट वाज़ पथेटिक डैड, समझ में ही नही आ रहा था की क्या बोलूं, आपको पता है पिछले साल जब वेलेंटाइन डे का फंक्शन हुआ था तो मैंने कितना अच्छा बोला था, कितनी देर तक तालियाँ भी बजी थी, मुझे अवार्ड भी मिला था, आइ मिस दैट डैड |
कोई बात नहीं बेबी – बस आने ही वाला है फेब्रुअरी, आई ऍम श्योर यू विल रॉक अगेन ||
यो – माय स्वीट डैड लव यू
आपका प्रोग्राम कैसा रहा, आई ऍम श्योर आपने लोगों को सुलाया नहीं होगा अपने भाषण से ?
ओह इट वाज़ होरिबल – तुम्हे पता है जब मै प्रोग्राम में पंहुचा तो ध्यान आया की भाषण वाली पर्ची तो मै घर पर ही भूल गया हूँ | यू कांट बिलीव की मेरी हालत कितनी बुरी हो गई थी |
ओह नो- फिर क्या किया आपने ?
करना क्या था- वही किया जो पिछले कई साल से करता आ रहा हूँ | से थैंक्स टू इंडियन रेलवे की, ये अपने हर एक डिब्बे में लिखकर रखते हैं – हिंदी हैं हम वतन हैं हिन्दोस्तां हमारा |
बस क्या शुरुवात कर दी इसी लाइन से – तालियाँ बजने लगी
फिर वही कविता जो पिछले कई साल से सुनाता आ रहा हूँ भारतेंदु जी की, सूना डाली इस साल भी वही
“निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।“
ओ वाओ डैड यू आर सो क्लेवर
अच्छा डैड मै आपको बताना तो भूल ही गई थी कि, आपके जाने के बाद पेपर वाला आया था बिल दे गया, वो भी फाइव हंड्रेड का |
अरे इतना ज्यादा ? वो कैसे ? पूछा नही ?
पूछा था, बताया की नीचे आपके दादा जी ने हिंदी का अखबार लगवा लिया है पिछले महीने से, उसका बिल भी ऐड किया है उसमें ||
उफ़ ये पिता जी भी ना, दो दो पेपर आते हैं घर में इंग्लिश के और इनकों हिंदी की पड़ी हैं, बिल के बारे में तो सोचते ही नहीं ||
यस डैड, काश ग्रेंडपा को भी इंग्लिश आती ना ? तो ये फालतू खर्चा बच जाता ||
आपको पता है कितनी बार मुझे परेशानी होती हैं इनकी वजह से, मै कई बार इंग्लिश शो देख रही होती हूँ और ये आ जाते हैं और बोलते हैं – बेटा ज़रा बाबा राम देव जी का चैनल लगा दो ना, यू नो हाउ बोरिंग एंड इरिटेटिंग इज ही ?
मै तो डिश वालों को बोलकर ये चैनल ही हटवाने वाली हूँ, या फिर इनके लिए आप एक अलग से टीवी ला दो ||
ठीक हैं करता हूँ मै कुछ – यू फोकस ओन योर कैरियर बेटा, यू हैव टू बिकम अ फोरेन डॉक्टर ना ||
एस डैड आई विल बी ||
वन सेकंड नेता जी का फ़ोन आ गया – हेल्लो गुड इवनिंग सर, कैसे हैं सर ?
आई ऍम गुड- तुम बताओ की प्रोग्राम कैसा रहा ||
अच्छा रहा सर – खूब नारे लगवा दिये थे, जय हिंदी के, और बोला भी कई बार की अगर हमारी पार्टी सत्ता में आती है तो हिंदी को मुख्य धारा से जोड़ा जायेगा, इसको अनिवार्य किया जाएगा सरकारी काम काज में ||
हिंदी हमारी सभ्यता है, पहचान है ||
वाह वाह – गुड गुड, अच्छा किया | चलो कल शाम को घर पर आ जाओ, एक सरकारी बंदा पुरानी अंग्रेजी शराब दे गया है, मूड बनाते हैं कल ||
ठीक है सर – गुड नाईट सर |
ओहो आज तो कम से कम शुभ रात्रि बोल दो | वैसे आज तुम तो हिंदी दिवस भी मना कर आये हो |
हा हा हा – शुभ रात्रि सर
गुड नाईट – ओह सॉरी – शुभ रात्रि | (प्रवीण

Wednesday, 6 January 2016


नेताओं के विचार लेने के मामले में मिडिया की अपनी प्री-डिफाइंड लिस्ट होती है, और मुझे लगता है कि अगर कोई जब मीडिया हाउस ज्वाइन करता है तो ट्रेनिंग के दौरान उसे सपथ दिलाया जाती है कि
"मैं TRP की कसम खाकर कहता हूँ कि मेरी इस नौकरी के दौरान अगर किसी ज्वलंत मुद्दे पर किसी नेता, अभिनेता का विचार लेना पडेगा तो मैं इस कंपनी की दी हुई लिस्ट के अलावा किसी और से बात नहीं करूँगा और TRP के मामले में किसी प्रकार का समझौता नहीं करूँगा" ।

मतलब इंटरव्यू लेने के मामले में रिपोर्टर कतई जेहादी टाइप हो लिए रहते हैं " जैसे किसी मंदिर की कोने की एक ईंट निकल गई तो योगी आदित्यनाथ के तरफ माइक लेकर भागना है, और पूछना होगा कि सर आपको क्या लगता है कि ट्रैक्टर कहीं दूसरे धर्म का ड्राइवर तो नहीं चला रहा था न, ये एक ईंट निकालकर आपके धर्म की नीव कमजोर करने की कोई साजिश तो नहीं है ।

अगर किसी मस्जिद के कोने पर किसी ने कमला पसंद खाकर थूक दिया है तो इंटरव्यू ओवैशी का बनता है "सर आपको क्या लगता है कि मस्जिद के आस पास जो हिंदुओं ने पान की दूकान लगा रखी ये कहीं उन्ही की साजिश तो नहीं है ये आपके धर्म पर भगवा कलर की थूक से आपके धर्म को नीचा दिखाने की नापाक कोशिश तो नहीं है न ?"

बात आगे की करते है सोचिये मायावती की किस्मत भी कमाल की है अगर तीसरा विश्वयुद्ध भी छिड़ जाए तो एक मिडिया वाला मायावती के पास नहीं जायेगा लेकिन सवर्णों के खेत में लगे कटीले तार से अगर किसी दलित की धोती फट गई तो मिडिया सबसे पहले मायावती को फोन लगाएगी "मैडम आपको नहीं लगता कि सवर्णों ने जानबूझकर कटीले तार बाहर की तरफ लगा रखे हैं जिससे कि दलित की धोती फ़टे और दलितों की इज्जत सरेआम उछाली जा सके" ।

मुझे लगता है कि मिडिया किसी घटना के बाद की घटना के लिए एकलौती जिम्मेदार होती है । TRP एक यज्ञ है, नेता उसमे डाले जाने वाले घी, और आहुती तो हमेशा से जनता की ही दी जाती रही है ये आपको बताने की जरूरत नहीं है ।

Monday, 4 January 2016




तमीज का डेमो
अभी कुछ देर पहले की ही बात है, मैंने एक स्नैक्स पॉइंट पर लंच किया और फिर एक चॉकलेट कप लेकर खाने लगा, स्टॉल बाहर की तरफ ही लगा था, ये बच्चे मेरे पास भागते हुए आये और चॉकलेट मांगने लगे जो लगभग आम बात उन बच्चों के साथ जो अपना बचपन फुटपात पर जीते हैं और जीविका कूड़े में खोजते हैं ।
तभी रेस्टोरेंट का ऑफिस बॉय इनको भगाने के लिए आया और मारते हुए भगाने लगा हाँ साथ में कुछ गालियां भी दी ।
अरे अरे क्यों मार रहे हो भाई - मैंने उसे रोकते हुए बोला 
अरे सर आप नहीं जानते हैं बहुत बद्तमीज हैं ये बस मारने की भाषा समझते है - ऑफिस ब्यॉय
लेकिन इसमें इनका क्या दोष है, तुम तो मुझे निहायत खनादानी लग रहे हो और जब तुममे तमीज नहीं है तो इनमे कहाँ से होगी जिसने बचपन संभालते हुए कूड़े में ही अपनी जिंदगी खोजी और तुम्हारे जैसे लोगों से रूबरू हुआ ।
मैंने चार केक पुडिंग्स और आर्डर दिया और बच्चों में बाट कर साथ ही खाने लगा ।
मेरे आर्डर देने के बाद उनके चेहरे बिल्कुल उतनी ही ख़ुशी थी जितनी गर्ल फ्रेंड के प्रोपोजल एक्सेप्ट करने पर आशिक की होती है ।
और लगभग सभी ने एक साथ ही मुझसे बोला "थैंक्यू भइया"
मैंने उनसे इन शब्दों की बिलकुल उम्मीद नहीं की थी क्यों की उनमे तमीज का ना होने की बात मैं भी मान रहा था ।
लेकिन "थैंक्यू भइया" ने मुझे अंदर से झकझोर दिया और एहसास हो गया की तमीज तो कमाई जाती है ।
मैंने ऑफिस बॉय की तरफ देखा तो वो आँखें नहीं मिला पा रहा था क्यों की
"तमीज का डेमो ही गजब का था"
मात्र 80 रूपये में तमीज़ और खुशियाँ दोनों खरीद ली थी मैंने ।
प्रवीण)

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