मै उस दिन बैंक के अन्दर गया ही था की मेरे बॉस ने फ़ोन पर कहा कि “तुम रहने दो, लौट आओ और अपनी फाइल जमा कर दो दो, काम करने की जरुरत नहीं है” | मै लौट आया, लाजपत नगर अपने ऑफिस के पास ही एक पार्क में आकर बैठ गया, सोच लिया था की अब काम नहीं करना यहाँ, वैसे भी बॉस ने बोल ही दिया है की अब तुमसे काम नहीं करवाना, तो मेरे पास पूरा दिन था, क्यूंकि जब ऑफिस जाकर फाइल सबमिट ही करनी थी तो ऐसी भी क्या जल्दी थी, ये काम तो दिन में कभी भी हो सकता था, सर्दियों का मौसम था, दिल्ली की सर्दी अपने चरम पर थी, उस पार्क में बैठकर मै स्ट्रेस और हल्का दोनों फील कर रहा था, स्ट्रेस था की अब कोई दूसरी नौकरी खोजनी पड़ेगी, और हल्का इसीलिए फील कर था की जिस काम में आपको आपके काम की इज्जत नहीं मिल रही हो वहां से हट जाना ही बेहतर होता है और उस दिन मै ठान चूका था कि आज इस कंपनी में मेरा आखिरी दिन है, मैंने पार्क में बैठकर अपने लगभग सारे दोस्तों को फोन कर दिया की आज नौकरी चली जायेगी, कोई नौकरी हो तो बताओ मेरे लिए |
मेरे करियर की पहली जॉब मार्किट प्रूव, जिसमे मै एक फ्रीलांसर के रूप में काम करता था, मेरा काम था की स्टैण्डर्ड चार्टर्ड बैंक्स के ब्रान्चेस के सामने खड़े होकर वहां आने जाने वाले हर कस्टमर का फीडबैक लेना, उन दिनों लगभग 18 ब्रान्चेस थी बैंक की और मै उस प्रोजेक्ट में अकेला एम्प्लोयी था, उसदिन मुझे नॉएडा सेक्टर 18 की ब्रांच में जाना था, मै उत्तम नगर रहता था , वहां से कोई सीधी बस नहीं थी, पहले मुझे धौलाकुवां के लिए बस लेनी थी और उसके बाद वहां से नॉएडा की बस मिलती |
मै कई दिनों से वायरल में था, बुखार आता जाता रहता था दवाई खाने के बाद, सुबह बिलकुल मन नहीं था की मै जाऊं आज काम पर, लेकिन दवाई के असर से बुखार नहीं था उस वक्त तो, मै निकल पड़ा, मुझे साढ़े नौ बजे पहुचना था, मै सही वक्त पर निकल गया था लेकिन समय पर बस ना मिलने से करीब एक घंटे लेट हो गया.मै जैसे ही ब्रांच पहुचा था कि, बॉस का काल आया की कहाँ हो?
अभी ब्रांच पहुंचा हूँ सर – मैंने जवाब दिया
इतना लेट क्यूँ हुआ? मैंने अपनी बात बताई की तबियत ठीक नहीं है सर, और दूसरा बस नहीं मिली समय से तो लेट हो गया |
एक काम करो तुम ऑफिस आ जाओ, तुमसे काम नहीं हो सकता है अब, अपनी फाइल सबमिट करो और घर जाओ, बॉस ने गुस्से में बोला |
मैंने भी लगभग गुस्से में कहा ठीक है सर आ रहा हूँ, क्युकी मुझे लग रहा था की मैंने जानबूझकर लेट तो किया नहीं है |
लाजपत नगर के उस पार्क में घंटों बैठने के बाद, मै ऑफिस पहुचा, सामने मेरे बॉस थे, मैंने कहा सर फाइल किसे देनी है |
तुमसे अनिल सर मिलना चाहते हैं, अन्दर जाओ मिल लो |
अनिल झा सर उन दिनों ब्रांच हेड थे, मै उनसे इंटरव्यू के वक्त ही एक बार मिला था, दुबारा कभी कोई मुलाकात नहीं हुई थी उनसे जनरल गुड मोर्निंग के अलावा |
मै थोडा सा डर गया कि नौकरी तो जाएगी ही लग रहा है क्लास भी लगेगी अब |
आइये प्रवीण, बैठिये – अनिल सर के केबिन में जाते उन्होंने मुस्कराते हुए कहा
क्या हुआ आज, क्यूँ काम नहीं कर पा रहे हैं?
मैंने अपनी सारी बात बता दी कि सर मै कई कई दिन से वायरल में हूँ और आज निकला तो समय से ही था लेकिन नॉएडा बहुत दूर है मेरे घर से, और समय से बस नहीं मिल और तो लेट हो गया, तो सर ने बोला की फाइल सबमिट कर दो |
अनिल सर पूरी बात बड़ी इत्मिनान से सुनते रहे, उन्होंने ने कुछ नहीं बोला |
पर्स से 500 रुपये का नोट निकाला और मुझे देते हुए कहा, अगर आराम करना है तो कर लो एक दो दिन, छुट्टी ले लो, और अब आगे से आस पास के ब्रांच में ही जाना कुछ दिन जब तक आप ठीक न हो जाओ, और ये पैसे रख लो और बस ना लेकर ऑटो से चले जाना, और पैसे कम पड़ जाए तो बता देना जो भी खर्च होगा, मिल जाएगा आपको |
मेरे लिए ये बिलकुल अचंभित करने वाला वाकया था, मै जहाँ पहले अन्दर से डरा हुआ था की आज तो नौकरी जायेगी और क्लास भी लगेगी, लेकिन इसके उलट हो रहा था सब कुछ |
मै बहुत कुछ नहीं बोल पाया उस वक्त, पैसे लिए और थैंक यू बोलते हुए बाहर आ गया, 2006 में वो 500 का नोट बेहद कीमती था मेरे लिए, प्राइवेट ऑटो में बैठना लक्ज़री थी मेरे लिए, लेकिन उससे भी अहम् वो बात थी, जो अनिल सर का व्यवहार था उस दिन |
मेरे कॉर्पोरेट की दुनिया में लीडरशिप की वो पहली क्लास थी मेरी, जिसमे एम्पथी थी, लिसनिंग स्किल्स थी, स्पेस देना था, एम्प्लोयी की फीलिंग को समझना था, और उससे भी बड़ी बात थी उस डिस्कशन में उनकी सजहता जो जिसने मुझे बहुत सहज कर दिया था |
अब ये बात बताने वाली नहीं है की मै अगले दिन ज्यादा खुश और मोटिवेटेड था काम पर जाने के लिए और मुझे याद है कि उस प्रोजेक्ट में सबसे लम्बे टाइम तक काम करने वाला पहला फ्रीलांसर था |
आज करीब 13 साल बाद जब मै एक फ्रीलांसर से अपनी कंपनी Skilling You को लीड कर रहा हूँ, और अनिल सर Aeon Market Research कंपनी के फाउंडर एंड डायरेक्टर हैं, जिसमें 18 शहरों में 1000 से ज्यादा एम्प्लोयी हैं, वो बातें जो उनसे सीखी थी आज भी लाज़मी लगती हैं जितना उस दिन थी
शुक्रिया Mr Anil Jha , आपके सिखाई हुई बातें आज भी मुझे बहुत ताकत देती हैं और एक बेहतर लीडर बनने से पहले एक बेहतर इन्सान बनना सिखाती हैं |
Praveen Kumar Rajbhar
0 comments:
Post a Comment