Sunday 3 September 2017



सुबह के 9 बजे रहे थे, सामने लैपटॉप खुला हुआ था, बड़े सारे टैब्स खुले थे लेकिन जो सामने था वो था फेसबुक | ये कहना गलत नहीं होगा की आजकल जितना लगाव इस फेस-बुक से है अगर उतना ही लगाव सेलेबस की  वाली बुक्स से हो जाता तो जाता था बात शायद कुछ और ही रहती |
मै बड़ी देर से फेसबुक पर जाने क्या देख रहा था, और ये ऐसा नहीं था की ये “जाने क्या वाला ख्याल पहली बार आया हो”, कई बार पहले भी घंटों फेसबुक पर रहने के बाद जब खुद से सवाल पूछा तो यही उत्तर मिला, कि जाने क्या कर रहा था इतने वक्त से |
लेकिन आज जैसा फील हुआ वो पहले कभी नहीं था, आज वाला पहले वालों से थोड़ा अलग था | फेसबुक ने बहुत बड़ा परिवार दिया है मुझे, बहुत से प्यारे मित्र इस आभासी दुनिया से निकलकर आज असल जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन ये दुनिया बहुत मायावी है, आप शुरुवात महज एक नोटिफिकेशन से करते हैं और फिर उसकेबाद जाने कहा कहा घूमते हुए पता भी नहीं चलता की फेसबुक पर पिछले आधे घंटे से उन लोगों के पोस्ट पढ़कर “दुनिया बहुत बुरी हो चुकी है लोगों में प्यार कम ज़हर ज्यादा है” टाइप कमेंट कर रहे हैं जिन्हें आप ठीक से जानते भी नहीं हैं और उस बन्दे ने भी अपनी डीपी में एनाकोंडा की फोटो लगा रखी है | एक वक्त था जब बिना बीडी सिगरेट के सुबह सुबह हलके ना हो पाने वालों की तादात थी और लेकिन आजकल बिना हाथ में फोन लिए टॉयलेट में न उतरने वालों की ज्यादा है |
हालाकिं मुद्दा यहाँ ये नहीं हैं, हम सभी जानते हैं कि सोशल मिडिया एक बहुत बड़ा साधन है तो समस्या भी है, समय कब कैसे निकल जाता है पता नहीं चलता, और समय सीमित हैं बाकी चीजों में तो इन्सान जुगाड़ सिस्टम से ऊपर नीचे करवा सकता है |
मै कल सुबह अपने लैपटॉप पर फेसबुक चेक कर रहा था, अचानक मेरा हाथ फोन पर जाता है जो पास में ही चार्ज में लगा था और मै फ़ोन उठा लेता हूँ, गौर करने वाली बात ये है की कोई काल नहीं आई थी, कोई मेल की नोटिफिकेशन नहीं आई थी, कोई टेक्स्ट मेसेज नहीं आया था, बस हाथ चला गया और फोन उठ गया, और ये सब कुछ जैसे अपने आप हो रहा हो, अनजाने में, बिना किसी कमांड के |
 फ़ोन उठाते ही फिंगर प्रिंट्स से मैंने अपना फ़ोन ओन किया, पहला क्लीक उस फोल्डर था जहाँ सोशल मिडिया के सारे एप्स थे, दुसरा क्लीक फेसबुक के आइकॉन पर था और तीसरे पल मै अपने मोबाइल पर भी फेसबुक खोल चूका था |
अचानक मेरा दिमाग कौंधा जैसे कि ये मै क्या कर रहा हूँ, सामने लैपटॉप पर फेसबुक और मोबाइल फोन में भी, मेरी नज़र महज कुछ सेकंड्स में ही कई बार फोन और लैपटॉप पर गई और जाने कितने सवाल कर दिए, और पहला सवाल था “प्रवीण अब ये कुछ ज्यादा नहीं हो गया क्या ? और जवाब भी तुरंत आया हाँ ज्यादा हो गया है |

फिर मैंने अपने आपको टटोलना शुरू किया तो पाया की मै तो लगभग हर 10-15 मिनट के अन्तराल में फेसबुक के नोटिफिकेशन देख रहा होता हूँ, भारत पाकिस्तान के मुद्दे से लेकर बीफ बैन और गौ माता की बात कर रहा होता हूँ या देख रहा होता हूँ, बिना पढ़े जाने कितने आर्टिकल्स लाइक्स कर रहा होता हूँ क्यूंकि सालों पहले उनके कुछ आर्टिकल पढ़ लिए थे तो अब लगता है इन्होने लिखा है तो अच्छा ही होगा, जैसे मेरे महज एक लाइक से उनके इस महीने का खर्चा चलता हो |

लोगों के टेढ़े मुह वाले सेल्फी पर अपने अंगूठे से मुहर लगा रहा होता हूँ और ये सब कुछ पुरे दिन होता है, सवाल था कि क्या अगर ये सब केवल मै सुबह शाम करूँ तो मार्क जुकरबर्ग मुझसे नाराज हो जाएगा, या मेरे दोस्त रिश्तेदार मुझे “अब तो शादी कर ले ” वाले आइडिया देना बंद कर देंगे, या वो टेढ़े मुह वाली लड़की कल से अपना मुह सीधा करके फोटो डालेगी तो उत्तर था “नहीं” |
शायद जवाब ये था की तुम्हारे दिमाग में ये इस तरफ से घुस चूका है की फोन उठाते ही पहले 3 क्लिक्स में तुम फेसबुक पर पहुच चुके होते हो |
मुझे अपने समय की फिकर होने लगी, लगने लगा की मै कितना समय बस इन्हीं नोटिफिकेशन में लगा देता हूँ और मैंने उसी वक्त अपने फोन से अपना फेसबुक का मोबाइल एप अनइंस्टाल कर दिया, और वादा किया की अब फेसबुक बस लैपटॉप से ही जारी रखूँगा |
एप डिलीट किये हुए 48 घंटे हो चुके हैं , सेहत में कोई गिरावट नहीं है, लाइक्स वैसे ही हैं, दोस्त पहले से ज्यादा कनेक्टेड हैं और समय ज्यादा है |
दोस्तों मै यहाँ अपनी फिलासफी नहीं दे रहा लेकिन शायद “अति सर्वर्त्र वर्जयेत” टाइप कुछ समझ में आ गया था और मुझे अपने आपको टेस्ट करने के लिए ये कदम उठाना ही था की कहीं मै एडिक्टेड तो नहीं हो गया |

अच्छा लग रहा है, शायद मै सोशल मिडिया में सोशल होने के नाम पर अब ज्यादा अनसोशल नहीं हूँ क्यूंकि कई बार सामने बचपन का दोस्त मिलने के लिए आया होता है और मै उस एनाकोंडा वाले दोस्त के “99 टाइप करो और जादू देखो” वाले पोस्ट पर कमेन्ट करके जादू की उम्मीद कर रहा होता था | 

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