Monday, 18 September 2017

इस दुनिया में हर उस चेहरे को लोग पसंद करते हैं जो हंसते और मुस्कराते रहते हैं ।आज की कहानी कुछ ऐसी है कि मैं जब भी मेट्रो से ट्रेवल करता हूँ, सिक्योरिटी चेक के वक्त वहाँ चेक कर रहे आर्मी के जवानों को जय हिंद जरूर बोलता हूँ और शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि जवान ने पलटकर मुस्कराते हुए जय हिंद ना बोला हो ।
सुबह सुबह कंधे पर लैपटॉप बैग और लैपटॉप में जाने कितने आधे अधूरी प्रोजेक्ट फाइलों को सेव करते हुए एक अरसा बीत गया लेकिन सुबह की ये मुस्कराहट और जयहिंद उस वक्त को कभी भी अधूरी नही छोड़ती है, ये करके मुझे जहां खुद को बहुत सुकून मिलता है वही दूसरे चेहरे पर आई खुशी इस चेहरे के सुकून हो दोगुना कर देती है ।
आज थोड़ा अलग हुआ, हम लोग आज इस भाग दौड़ में रहते हैं कि सुबह के नास्ते में आई चाय और पराठे के साथ भी कई बार ठीक से न्याय नही कर पाते हैं, दौड़ते भागते नास्ता करते हैं जैसे बस ये समय बचा लें तो सब कुछ समय पर हो जाये, कभी सोचियेगा कितनी कमाल की समझ है ना ये भी । खैर जाने कितने साल हो गए सुकून से सुबह ना भागते हए मेट्रो लेने को ।
आज मैं फिर से दो पराठे में से एक पराठे खाने के बाद आधी कप चाय पीकर ही भागते हुए मेट्रो लेने के लिए निकल पड़ा, समझ मे नही आता है कि इतना टाइम हो गया लेकिन ये 5 मिनट लेट होने वाले मामले का इक्वेशन ठीक से क्यों नही बैठता ।
सिक्योरिटी चेक के पास आकर मैंने अपने कानों से ईयर फोन निकाले और बैग को स्कैनर में फेकते हुए जैसे ही आगे बढ़ा सामने एक मुस्कराता चेहरा मेरा इंतज़ार कर रहा था ।
मैंने चेकिंग के लिए दोनों हाथ ऊपर उठाया, इस भाग दौड़ में शायद आज का जयहिंद कहीं भुल गया था मैं, या यूं कहें कि दिमाग फ़ोन पर था जिसपर एक दोस्त पहले से ही लाइन पर था
लेकिन इसी बीच जवान ने मुझे मुस्कराते हुए कहा "कैसे हैं आप"
मुझे एक बार को समझ मे ही नही आया कि हुआ क्या है, बिल्कुल उम्मीद नही थी कि इस तरह से भी होगा, मैं बिल्कुल तैयार नही था कि वो जवान मुझे पहचानता है, या ना भी पहचानता है तो ये पूछ लेगा की कैसा हूँ मैं, और खुद से उम्मीद तो ये भी नही थी कि मैं जयहिंद बोलना भूल जाऊंगा, मुझे खुद से शर्मिंदगी महसूस हुई, जैसे मैंने अपना वादा ही तोड़ दिया हो जो मैंने खुद से काफी दिनों से किया हो ।
मैंने तुरंत जवाब देते हुए "मैं ठीक हुँ, जय हिंद, आप कैसे हैं" एक ही सांस में बोल दिया ।
जवान की भाषा से लगा कि वो साउथ का है, उधर से भी उसने कहा "मैं भी ठीक हूँ" और ये बोलते हुए उसके चेहरे पर करोड़ो की मुस्कराहट थी और मैं इतना खुश था कि जैसे ये करोड़ों की मुस्कराहट मेरे सेविंग एकाउंट में क्रेडिट हो गए हों ।
इस महज 30 सेकंड की घटना ने जाने कितनी बाते समझा दी मुझे ।
मुझे उम्मीद नही थी कि ये जयहिंद बोलना मेरी पहचान बन गया है उस जवान के नज़रों में ।
मुझे उम्मीद नही थी कि जवान उम्मीद कर रहा होगा कि मैंने आज जय हिंद क्यों नही बोला, मुझे उम्मीद नही थी कि महज 30 सेकंड वाले सेक्युरिटी चेक करने वाले जवान से मेरा एक रिश्ता भी जुड़ चुका है । उम्मीद नही थी कि अगर मैं मिस कर दूं तो उस जयहिंद वाले रिस्ते के हवाले से मुझसे पलट कर ये पूछा जा सकता है कि "आप कैसे हैं" ।
कुल मिलाकर मामला ये समझ में आया कि आप दिन भर सोशल मिडीया पर भले ही हजारों स्माइलीज भेज देते हों, लाइक करते हों , नए दोस्त बनाते हों। लेकिन रियल लाइफ में इस तरह की दोस्तियां तो जैसे दिन ही बना देती हैं, यहां न ब्लॉक होने का डर है, ना किसी के कमेंट की उम्मीद ।

लेकिन बहुत ही प्यारा एहसास है ये, दोस्तों रिस्ते बनाने के फंडे आज भी वही हैं जो सोशल मीडिया के आने से पहले थे । जुड़ते रहिये, याद रखिये वो हर इंसान आपसे उम्मीद रखता है जिससे आप इंटरेक्शन करते हैं, मुस्कराहट की उम्मीद, पूछे जाने की उम्मीद, उसे याद रखने की उम्मीद ।
तो मुस्कराते रहिये न, यही तो जिंदगी है जाने कब कौन आपके सेविंग्स खाते में करोड़ों स्माइल जमा कर दे, या फिर क्या आपने ऐसा किया कि ये बात सच हो जाए ।

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